घरों से इस्तेमाल किए हुए सैनिटरी पैड इकट्ठा करती है ये टीम, वजह भी जान लीजिए

सविता बेन 32 साल की हैं. गुजरात के पेटलाद में रहती हैं. सुबह 5 बजे उठती हैं. खाना बनाती हैं. बच्चों तैयार करके स्कूल भेजती हैं. 7 बजे पति के साथ काम पर निकल जाती हैं. वो दोनों लोगों के घरों से इस्तेमाल किए सैनेटरी पैड और डायपर इकट्ठे करते हैं. आप सोच रहे होंगे कि इन दोनों को ऐसी क्या पड़ी है कि पैड और डायपर इकट्ठा करते हैं, वो भी दूसरों के यूज किए हुए?

ये दोनों पेटलाद नगर-निगम में काम करते हैं. सविता बेन के पति रमेश निगम का रिक्शा चलाते हैं और वह उनके साथ जाती हैं. दोपहर तक पैड-डायपर इकट्ठा करके ये लोग उसे इंसीनेटर मशीन तक लेकर जाते हैं. इंसीनेटर मशीन यानी वो मशीन जो सैनिटरी वेस्ट को बिना पॉल्यूशन फैलाए नष्ट कर देती है. दोनों एक साल ये काम कर रहे हैं.

दरअसल, सैनिटरी वेस्ट से फैलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए पेटलाद नगर निगम ने 'ऑन फोन ई-रिक्शा' सर्विस शुरू की है. इस अभियान में करीब 40 महिलाएं जुड़ी हुई हैं.

पेटलाद नगर निगम की मुख्य अधिकारी हिरल ठाकर ने इंडिया टुडे की रिपोर्टर हेताली शाह को बताया कि पहले लोग कचरे के डिब्बे में ही सैनेटरी पैड और डायपर फेंक देते थे. ये आसानी से डिकंपोज यानी नष्ट नहीं होते हैं. ऐसे में इन्हें सही तरीके से नष्ट करने के लिए बाकी कचरे से अलग करना पड़ता था.

इसका हल निकालने के लिए निगम ने एक साल पहले 'ऑन फोन ई-रिक्शा' अभियान शुरू किया. निगम ने ई-रिक्शा टीम बनाई और क्षेत्र के लोगों को एक नंबर दिया है. उस नंबर पर कॉल करने पर निगम के सफाई कर्मचारी लोगों के घरों में जाकर पैड्स और डायपर कलेक्ट करने लगे.

हालांकि शुरुआत में ये अभियान फेल होता नजर आया. क्योंकि महिलाएं सैनेटरी पैड्स कलेक्ट करने के लिए पुरुष कर्मचारियों को फोन करने में हिचकिचाती थीं. इसके बाद महिलाओं को भी इस अभियान से जोड़ा गया.

सविता बेन बताती हैं कि शुरुआत में उनके पास दिन में 10-15 कॉल आते थे, लेकिन अब उनके पास दिन में 300 से 400 कॉल आते हैं.

निगम में महिला कर्मचारियों के 2 सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं और कुल 40 महिलाएं इसमें काम कर रही हैं. मौजूदा समय में एक वार्ड में 2 महिला कर्मचारी काम करती हैं. ये महिलाएं सुबह 7 बजे से शाम को 6 बजे तक करीब 300 से 400 घरों से वेस्ट मटेरियल इकट्ठा करती हैं और पुरुष कर्मचारी गाड़ी चलाते हैं.

इसके बाद ये वेस्ट मटेरियल निगम के इंसीनेटर मशीन तक पहुंचाया जाता हैं. जहां इसे मशीन में जलाकर नष्ट किया जाता है. हिरल बताती हैं कि इंसीनेटर मशीन में पैड्स और डायपर जलाने पर न तो भूमि प्रदूषण और वायु प्रदूषण नहीं होता है. 20 से 25 पैड्स जलाने पर 1 से 2 ग्राम राख निकलती है.

हिरल बताती हैं कि गुजरात में ये अभियान सिर्फ पेटलाद नगर निगम ही चला रही हैं. इसमें स्थानीय निकाय की महिला सदस्यों और हेल्थकेयर सर्विस ग्रुप की महिलाओं को भी शामिल किया गया जा रहा है. इन महिलाओं की सैलेरी 3000 रुपये से 7000 रुपये के बीच है.

इस अभियान में पुरुष सफाई कर्मचारियों की पत्नियों को जोड़ा गया. हिरल कहती हैं, इस अभियान की अच्छी बात ये भी है कि जो महिलाएं पहले गृहिणी थीं, वो काम कर रही हैं. इस अभियान में पति-पत्नी दोनों को रोजगार मिला है.

आसान नहीं होता है किसी के इस्तेमाल किए डायपर और सैनेटरी पैड्स उठाना. शुक्रिया कहिए इन महिलाओं को जो हर रोज सैंकड़ो घरों का वेस्ट उठाती हैं. ताकि आपकी और हमारी आने वाली पीढ़ी साफ हवा में सांस ले सके. 

Source - Odd Nari