कभी आपने सोचा है कि योग तो वेदों के काल से भारतीय प्राचीन परंपरा का हिस्सा रहा है. पौराणिक कथाओं में ऐसी भी चर्चाएं आती हैं कि योगी किस तरह प्राणायाम से इतने आत्मसंयमी हो जाते थे कि वे घंटों अपनी सांस रोक सकते थे या कई दिनों तक भूखे रह सकते थे. फिर भी योग में महर्षि पतंजलि का नाम इतना मशहूर क्यों हुआ. दिल्ली विश्वविद्यालय के योग और ध्यान विशेषज्ञ से बातचीत में उनसे जुड़े कई जवाब मिलते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के महाराजा अग्रसेन कॉलेज के शिक्षक डॉ. मुकेश अग्रवाल मेडिटेशन पर शोध कर चुके हैं. इसके अलावा सूर्य नमस्कार के फिजियोलॉजिकल और साइकोलॉजिकल असर पर भी उनका अध्ययन है. वह योग और महर्षि पतंजलि के रिश्ते के बारे में कुछ यूं बताते हैं.
डॉ मुकेश कहते हैं कि महर्षि पतंजलि को पूरी दुनिया उनके योग सूत्र की रचना से जानती है. उन्होंने योग सूत्र में अष्टांग योग के जरिये योग को लाइफस्टाइल से जोड़ा. आज इस ग्रंथ की प्रसिद्धि पश्चिमी जगत में है. अंग्रेजी सहित विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है. असल में कहा जाए तो पुराने समय के ऋषियों से ज्यादा उनका नाम भी इसीलिए है क्योंकि उन्होंने योग को लिखकर संजोया.
उन्होंने योग के बारे में सिस्टमेटिक ढंग से लिखा. जो बाद में लोगों को मिला तो इसके बाद योगसूत्र पर कई भाष्यग्रंथ लिखे गए. इसमें से सबसे पुराना ब्यास भाष्य माना जाता है जो योगसूत्र का सबसे पुराना भाष्य है.
अष्टांग योग
महर्षि पतंजलि ने योग को मन की चंचलता को स्थिर करने की प्राचीनतम तकनीक कहा है. योगसूत्र में उन्होंने पूर्ण कल्याण के अलावा शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शुद्धि के लिए आठ अंगों के अष्टांग योग का वर्णन किया है.
ये हैं अष्टांग योग के आठ अंग
यम: अकेले इस अंग को अपनाने के लिए आपको पांच सामाजिक नैतिक बिंदुओं अहिंसा, सत्य, अस्तेय(चोरी कपट से बचना), ब्रह्मचर्य(सभी इंद्रिय सुखों में संयम बरतना) और अपरिग्रह यानी जरूरत अष्टांगअष्टांगसे ज्यादा बचत व दूसरों की चीजों पर लालच न रखना है.
नियम: नियम में आपके शौच यानी शरीर और मन की गंदगी को बाहर निकालना, संतोष, तप और स्वाध्याय करना होता है. इसके अलावा ईश्वर या आत्मा के प्रति पूर्ण समर्पण भी इसमें निहित है.
आसन: तीसरे स्थान पर आसन आते हैं जिसमें योग के अलग-अलग आसन किए जाते हैं, लेकिन उससे पहले यम और नियम का पालन जरूरी बताया जाता है.
प्राणायाम: चौथा चरण प्राणायाम है जो आसन की अवस्था के बाद आता है इसमें एक योगी खास तकनीकों से सांस और प्राण पर नियंत्रण करना सीखता है.
प्रत्याहार: योग का पांचवां चरण प्रत्याहार है जिसमें महर्षि पतंजलि इन्द्रियों को अंतर्मुखी और नियंत्रित करने का प्रशिक्षण देते हैं. इसके बाद छठी प्रक्रिया धारणा यानी एकाग्रचित होना है. इसकी सातवीं प्रक्रिया है ध्यान जो कि बेहद महत्वपूर्ण चरण माना जाता है. ध्यान की प्रक्रिया से पहले एक साधक को जीवन चर्या में त्याग के कई चरण पार करने पड़ते हैं.
समाधि: अष्टांग योग का सबसे अंतिम या कहें आखिरी मंजिल है आत्मा से जुड़ना. ध्यान की परम अवस्था में एक योगी समाधि धारण करने की योग्यता रखता है. महर्षि ने इसे शब्दों से परे परम-चैतन्य की अवस्था कहा है.