जलवायु परिवर्तन को लेकर भारत अगर आज भी सजग नहीं हुआ तो आने वाला वक्त महंगा साबित हो सकता है. भारत 2050 तक फल-सब्जियों के अलावा दूध के लिए भी तरस जाएगा. यह बात पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट में सामने आई है. इसे बीजेपी सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली समिति ने संसद में पेश किया है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि दूध के उत्पादन को लेकर यदि नहीं संभले तो इसका असर 2020 तक दिखने लगेगा. दूध के उत्पादन में 1.6 मीट्रिक टन की कमी आ सकती है. इसके अलावा चावल समेत कई फसलों के उत्पादन में कमी और किसानों की आजीविका पर इसका असर दिखाई देगा.
तापमान बढ़ने से गेहूं की उपज में दिखेगा असर...
जलवायु परिवर्तन का सीधा असर फसलों पर भी दिखाई देगा. 2020 तक चावल के उत्पादन में 4 से 6 फीसदी, आलू में 11, मक्का में 18, सरसों में 2 फीसदी तक कमी आ सकती है. वहीं, सबसे बुरा असर गेंहू की उपज पर होगा. अनुमान है कि गेहूं की उपज 60 लाख टन तक गिरेगी.
किन राज्यों में गिरेगा दूध का उत्पादन...
रिपोर्ट के अनुसार, दूध के उत्पादन में सबसे ज्यादा गिरावट उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में देखने को मिलेगी. ग्लोबल वॉर्मिंग से इन राज्यों में गर्मी तेजी से बढ़ेगी. इससे पानी की कमी होगी और जिसका असर पशु उत्पादकता परपड़ेगा.
सूख जाएंगे सेब के बाग...
सेब के बागानों पर भी जलवायु परिवर्तन का बुरा असर होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि सेब की खेती समुद्र तल से 2500 फीट की ऊंचाई पर करनी होगी. क्योंकि अभी खेती 1230 मीटर की ऊंचाई पर होती है. आने वाले वक्त में यहां गर्मी बढ़ने से सेब के बाग सूख जाएंगे और खेती ऊंचाई वाली जगह पर स्थानांतरित करनी पड़ेगी.
कपास का उत्पादन कहीं गिरेगा तो कहीं बढ़ेगा...
उत्तर भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण कपास उत्पादन कम होने तो मध्य और दक्षिण भारत में बढ़ोतरी होने की संभावना है. पश्चिम तटीय क्षेत्र केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र तथा पूर्वोत्तर राज्यों, अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप में नारियल उत्पादन में इजाफा होने का अनुमान है.
Source - Aaj Tak