पिछले एक साल से भारतीय ऑटो इंडस्ट्री की हालत खराब है और हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं. जुलाई में लगातार नौवें महीने पैसेंजर व्हीकल्स की बिक्री में गिरावट आई है. पिछले महीने बिक्री में करीब 30 फीसदी की गिरावट आई. मारुति सुजूकी की बिक्री में 36 फीसदी तो, होंडा कार्स की बिक्री में 49 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है. आइए जानते हैं कि आखिर क्या है इस बदहाली की वजह.
जून 2017 के बाद पहली बार मारुति ने किसी एक महीने में एक लाख से कम की बिक्री की है. ऐसा नहीं कि दूसरी कंपनियों की हालत कुछ बेहतर हो, हुंडई मोटर इंडिया, महिंद्रा ऐंड महिंद्रा की बिक्री में भी काफी गिरावट आई है, जबकि इन्होंने पिछले एक साल में कई मॉडल लॉन्च किए हैं. हुंडई की बिक्री में 10 फीसदी और महिंद्रा की बिक्री में 15 फीसदी की गिरावट आई है. होंडा कार्स की बिक्री में 49 फीसदी और टोयोटा की बिक्री में 24 फीसदी की गिरावट आई है. जुलाई में मारुति सुजुकी की घरेलू बिक्री पिछले साल के 1,54,150 वाहनों की तुलना में 36.30 फीसदी गिरकर 98,210 यूनिट्स पर आ गई.
अर्थव्यवस्था की सुस्ती
अर्थव्यवस्था में गिरावट, मंदी का माहौल है और लोगों की आमदनी, सैलरी में कुछ खास इजाफा नहीं हो रहा है. इसकी वजह से ऑटो सेक्टर की बिक्री परवान नहीं चढ़ पा रही. घर का बजट बिगड़े होने की वजह से बहुत से लोग कारों की खरीद को आगे के लिए टाल रहे हैं.
नकदी का संकट
इसके अलावा बीमा की लागत काफी बढ़ जाने, टैक्स बढ़ जाने और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों में नकदी के संकट की वजह से कारों, कॉमर्शियल वाहनों की बिक्री पर विपरीत असर पड़ा है. गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के पास नकदी संकट की वजह से ऑटो लोन मिलने में मुश्किल बढ़ी है.
ग्रामीण मांग में इजाफा नहीं
देश के कई इलाकों में मॉनसून की बारिश में देरी या कम बारिश की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी तेजी नहीं आ पा रही और इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में भी वाहनों की मांग नहीं बढ़ पा रही.
पुराने वाहनों का संगठित बाजार
पिछले कुछ वर्षों में पुराने वाहनों की बिक्री में कई संगठित खिलाड़ी उतरे हैं, इससे पुराने यानी प्री-ओन्ड व्हीकल का बाजार तेजी से बढ़ा है. इसकी वजह से भी नए कारों की बिक्री पर असर पड़ा है. वाहनों की कीमत बढ़ जाने से बहुत से लोग अब पुराने वाहनों को खरीदने का विकल्प अपना रहे हैं.
आगे भी रहेगी हालत पतली
अगले महीनों भी ऑटो इंडस्ट्री की हालत में बहुत सुधार की गुंजाइश नहीं दिख रही है. अप्रैल 2020 से बीएस-6 मानक को अपनाने की वजह से ऑटो कंपनियों का खर्च और इसकी वजह से उत्पादों की कीमत बढ़ेगी, जिसकी वजह से कम से कम अगले साल के अंत तक ऑटो कंपनियों के लिए मुश्किल बनी रहेगी.
डीलरों के पास माल जुट जाने की वजह से ज्यादातर कंपनियों ने जून में कारों के उत्पादन में कटौती की है. उत्सर्जन, बीमा और सुरक्षा मानक के पालन पर ऑटो कंपनियों का खर्च बढ़ता जा रहा है, जिससे अगले एक साल में वाहनों की कीमतों में 13 से 30 फीसदी तक की बढ़त हो सकती है.
Source - Aaj tak