31 अक्टूबर 1984.
वो तारीख जब देश की प्रधानमंत्री का उनके ही सुरक्षा गार्ड ने कत्ल कर दिया. घड़ी में सुबह के 9 बज चुके थे तब. मगर सुबह 6 बजे से 9 बजे के बीच क्या हुआ? अमेरिका के राष्ट्रपति इस वाकये में कैसे आ गए? डॉक्टर ने मेकअप पर क्या बात की? और एक बड़ा सवाल ये कि इंदिरा ने उस दिन अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहन रखी थी?
हर दिन की तरह इंदिरा सुबह 6 बजे सोकर उठीं. योग और दूसरी एक्सरसाइज की. फिर ठंडे पानी से स्नान किया. मौसम कैसा भी हो, इंदिरा अपने योगाचार्य धीरेंद्र ब्रह्मचारी की सलाह के मुताबिक गीजर यूज नहीं करती थीं.
स्नान के बाद इंदिरा को अपना परिधान चुनना था. आज साड़ी चुनते वक्त कुछ ज़्यादा लगा. मशहूर एक्टर, टीवी प्रेजेंटर पीटर उत्सिनोव को उनका इंटरव्यू करना था. इंदिरा ने इस मौके के लिए सूती साड़ी चुनी. हलके केसरिया रंग की. काले बॉर्डर वाली.
फिर उन्होंने नाश्ता निपटाया. हमेशा की तरह एक अधसिंकी ब्रेड, एक आधा बॉइल्ड अंडा, फल और दूध वाली कॉफी. इसके बाद इंदिरा के पर्सनल स्टाफ की महिला आकर उनका टचअप करने लगीं. तभी उनके डॉक्टर कृष्णा प्रसाद माथुर भी आ गए. 1966 में इंदिरा पहली मर्तबा पीएम बनीं. तब से डॉ. माथुर हर दिन उनके पास आते थे. स्वास्थ की जांच करने. मगर इंदिरा का स्वास्थ राजनीति में आने के बाद हमेशा बहुत अच्छा रहा. शरीर पर कभी अतिरिक्त चर्बी नहीं, खाने को लेकर किसी भी किस्म की लापरवाही नहीं. इसीलिए साठ पार करने के बाद भी उनको बुढ़ापे वाली ज्यादातर बीमारियां नहीं हुई थीं.
मगर प्रोटोकॉल था. इसलिए डॉ. माथुर को आना ही था. वह आते और दोनों इधर उधर की बातें करते.
31 अक्टूबर को डॉ. माथुर ने इंदिरा से अमेरिका की मशहूर मैगजीन टाइम के एक आर्टिकल का जिक्र किया. इसके मुताबिक उस वक्त के अमेरिका राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन इंटरव्यू के पहले मेकअप से परहेज करते थे. जब डॉ. ये बोले तो इंदिरा का मेकअप चल रहा था. उन्होंने डॉ. माथुर की बात का प्रतिवाद करते हुए कहा कि मैगजीन में झूठ लिखा है. रीगन मेकअप भी करते हैं और कान में एक ईयरपीस भी लगाते हैं. जब किसी मुश्किल सवाल के जवाब में वह अटकते हैं, तो बैकरूम में मौजूद उनके सहयोगी जवाब सुझाते हैं. डॉ. माथुर इंदिरा की इस जानकारी पर चकित हो गए. खिलखिलाहटों का दौर खत्म हुआ क्योंकि इंटरव्यू का वक्त हो चला था.
इंदिरा 1 सफदरजंग के घर से निकलीं. पैदल. क्योंकि उनके घर की दीवार से ही दफ्तर की दीवार लगी हुई थी. 1 अकबर रोड. बीच में एक गलियारा. बस उसी को पार करना था. इंदिरा आधे रास्ते ही पहुंचीं. काली सैंडल में उनकी चाल थमी नहीं थी. एक तरफ आंचल लहरा रहा था, दूसरी तरफ उनका लाल कसीदाकारी वाला झोला. पीछे पीछे दिल्ली पुलिस का एक कॉन्स्टेबल. मैडम के ऊपर छाता ताने हुए. उनसे कुछ फीट पीछे इंदिरा के निजी सचिव राजेंद्र कुमार धवन. उनके ठीक पीछे चपरासी और एक दरोगा.
इंदिरा अभी लकड़ी के उस छोटे गेट तक पहुंची ही थीं कि सामने से दरोगा बेअंत सिंह नमूदार हुआ. बेअंत पिछले 9 साल से उनके सुरक्षा अमले का हिस्सा था. कई बार साथ में विदेश भी गया था. कुछ महीने पहले उसे पीएम की सिक्योरिटी से एडवाइज़र और पूर्व रॉ चीफ आरएन काव के कहने पर हटा दिया गया था. लेकिन बेअंत ने सीधे मैडम से अपील की. धवन साहब और इंदिरा ने उसके ट्रांसफर ऑर्डर कैंसल कर दिए. इंदिरा का कहना था कि मुझे अपने सिख सुरक्षाकर्मियों पर पूरा भरोसा है. भरोसे का सवाल इसलिए उठ रहा था क्योंकि पांच महीने पहले ही ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ था.
इंदिरा ने बेअंत को देखा और समझ गईं कि अब सरदार जी नमस्ते करेंगे. इंदिरा ने बेअंत के नमस्कार की मुद्रा में आने से पहले ही हाथ मोड़ लिए. मगर बेअंत ने हाथ मोड़े नहीं. बल्कि तान दिए. सर्विस रिवॉल्वर समेत. इंदिरा के पास शायद आधा या एक सेकंड रहा होगा. वह चीखीं. क्या कर रहे हो.
तब तक गोली की तेज चीख ने आसमान चीर दिया. एक-एक करके पांच गोलियां. प्वाइंट ब्लैंक रेंज से.
अभी सन्नाटा घास पर पसरा भी नहीं था. इंदिरा का शरीर अभी घास पर पूरी तरह थमा नहीं था. कि तभी एक और सुरक्षा में तैनात सिपाही उनकी तरफ लपका. 22 साल का सतवंत सिंह. जो आतंकवादियों का केंद्र बन गए गुरदासपुर से आता था. आज उसने दस्त का बहाना कर भीतरी हिस्से में अपनी ड्यूटी लगवाई थी. गोलियों की आवाज सुन वह करीब आया और अपनी स्टेनगन इंदिरा की तरफ तान दी. उसके हाथ बंदूक पर कमजोर पड़ रहे थे. पसीने के चलते. मगर तभी बेअंत सिंह चीखा. ओए चला गोली.
सब लाेग यहीं रह गए. इंदिरा को सोनिया गांधी और धवन एम्स ले गए. जहां डॉक्टर कुछ घंटों तक नाकामयाब कोशिश करते रहे. ओ नेगेटिव ब्लड ग्रुप कम था. लोगों से अपील की गई. इतने लोग आ गए कि अस्पताल के गेट बंद करने पड़े. पर कोई फायदा नहीं. बंगाल में चुनावी दौरे पर गए बेटे राजीव गांधी को खबर कर दी गई. मौत की.
एक मौत और हुई थी. उस आदमी की जिसने इंदिरा को मारा था. बेअंत सिंह. फायरिंग के ठीक बाद उसने अपनी पिस्तौल फेंक दी. बोला, मुझे जो करना था, मैंने कर दिया. बाहरी गारद में तैनात आईटीबीपी के जवानों ने उसे दबोच लिया था. सतबंत को भी. बाद में खबर आई कि बेअंत ने भागने की, हथियार छीनने की कोशिश की. उसी धरपकड़ में उसे गोली लग गई. और वो मौके पर ही मारा गया. सतबंत और एक और साजिश करने वाले शख्स केहर सिंह को कुछ बरस बाद फांसी दी गई.
कैसी होती है जिंदगी. कुछ होने से पहले सब सामान्य चलता है. योग, कहकहे, कदमताल.
कैसी होती है जिंदगी. एक शख्स मरता है. कुछ लोगों की सनक और नफ़रत के चलते. फिर हजारों शख्स मरते हैं, उस एक शख्स की मौत का कथित बदला लेने के लिए.
ये मेरा भारत है. गुस्से से भरा. खुद के लिए. औरों के लिए. तब भी. अब भी.
Source - The Lallan Top