जिन काजू को आप स्वाद से खाते हैं, उन्हें आप तक पहुंचाने में इन औरतों के हाथ जल रहे हैं

जिन काजू को आप स्वाद से खाते हैं, उन्हें आप तक पहुंचाने में इन औरतों के हाथ जल रहे हैं

काजू में खूब स्वाद आता है. चाहे भून के खाओ या बर्फी बना के. लेकिन काजू वैसे ही नहीं उगते, जैसे आप इन्हें खाते हैं. इनका रूप मूंगफली की तरह होता है. लेकिन मूंगफली की तुलना में बाहरी कवच ज्यादा मजबूत होता है. जिसे सिर्फ उंगलियों से दबाकर नहीं तोड़ा जा सकता है. कुल मिलाकर काजू को आप तक पहुंचाने और खाने लायक बनाने के लिए खासी मशक्कत करनी होती है. जो बेहद दर्दनाक होती है. जानिए कैसे.
छीलना
काजू को पौधे से तोड़ने से खाने लायक बनाने के लिए चार प्रोसेस होकर गुजरना होता है. सबसे पहले इन्हें कुछ देर भाप में रखा जाता है. इसके 24 घंटे छांव में सुखाया जाता है. अब इन्हें छीलने का काम शुरू होता है. छिलने के बाद आकार के हिसाब से इन्हें छांटकर अलग किया जाता है. अब इन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए दुकानों पर सप्लाई किया जाता है.
काजू में कठोर खोल की दो परतें होती हैं, जिनके बीच नेचुरल एसिड होता है. ऐनाकार्डिक एसिड्स कहे जाने वाले ये नेचुरल एसिड पीले रंग के होते हैं. ये एसिड हाथों को जला देता है. हाथों में छाले हो जाते हैं. जो कि भयंकर जलन पैदा करते हैं. लगातार काम करने से ये जख्म नासूर जैसे हो जाते हैं. डेली मेल से बात करते हुए पुष्पा बताती हैं कि उनके हाथों पर जलने जैसे निशान हो चुके हैं. वह घर का काम भी करती हैं. इस वजह से उनके हाथों में बेहद दर्द रहता है. वह खाना खाने में चम्मच का इस्तेमाल नहीं करती हैं. तीखी सब्जी खाने से उनके हाथों में भयंकर जलन होती है. जिस वजह से उन्हें खाना खाने में भी मुश्किल होती है.
पुष्पा गांधी तमिलनाडू के पुदुकुप्पम गांव में रहती हैं. डेली मेल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक वो काजू छीलने का काम करती हैं. पुष्पा और उन जैसी पांच लाख महिलाओं को एक किलो काजू छीलने पर करीब 6, साढ़े 6 रुपये मिलते हैं. एक दिन में ये महिलाएं 30 से 35 किलो तक काजू छीलती हैं. तब इन्हें डेढ़ सौ से दो सौ रुपये तक मिल जाते हैं. उनके साथ 12-13 साल की बच्चियां भी यही काम करती हैं. ये महिलाएं और बच्चियां इन पैसों से परिवार चलाती हैं. ये सभी ठेके पर काम करती हैं. इसीलिए त्यौहार, बीमारी में छुट्टी करने पर पैसे कटते हैं. पेंशन जैसी कोई व्यवस्था नहीं है. समय पर काम के पैसे मिलना भी मुश्किल होता है.
इस इलाके से 40 फीसदी लोग काजू छीलने पर हुए घाव लेकर अस्पताल पहुंचते हैं. खासतौर पर तब जब एसिड उनके नाखूनों में घाव कर देता है और उन्हें इंफेक्शन हो जाता है.
आपको याद दिला दें, बाजार में काजू की कीमत 1200 से 2000 रुपये प्रति किलो है. ब्रांड के हिसाब से ऊपर-नीचे होती है. इस काजू के लिए हम जो कीमत चुकाते हैं, उसका डेढ़ परसेंट भी पुष्पा तक नहीं पहुंच पाता है.
Source - Odd Nari