गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान न करें
बच्चे के जन्म से पहले उसके स्वस्थ शुरुआत के लिए यह ज़रूरी है कि गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान से दूर रहा जाए. प्रेग्नेंसी के दौरान धूम्रपान करने से भ्रूण के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. सिगरेट के धुएं में मौजूद हानिकारक केमिकल्स गर्भ में मौजूद शिशु के मस्तिष्क को बहुत हानि पहुंचा सकते हैं. जब कोई महिला गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करती है तो सिगरेट में मौजूद विषाक्त पदार्थ रक्त में मिल जाते हैं, जो बच्चे के लिए ऑक्सिजन व पोषक तत्व का एकमात्र सोर्स होता है. वर्ष 2015 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान धूम्रपान करने से भ्रूण के मस्तिष्क के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ऐसी मांओं के बच्चों को लर्निंग डिस्ऑर्डर, बिहेवियरल प्रॉब्लम्स और अपेक्षाकृत लो आईक्यू जैसी समस्याएं होती हैं.
बच्चे को स्तनपान कराएं
नवजात शिशुओं के लिए मां का दूध बहुत ज़रूरी होता है. यह उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ उनके दिमाग़ को तेज़ बनाने में मदद करता है. मां के दूध में पाया जानेवाला फैट और कोलेस्ट्रॉल शिशु के मस्तिष्क के विकास में अहम् भूमिका निभाता है. वर्ष 2010 में पेडियाट्रिक रिसर्च में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, जो मांएं अपने बच्चों को स्तनपान कराती हैं, उनका कॉग्निटिव लेवल (बोध प्रक्रिया से संबंधित) ज़्यादा होता है. वर्ष 2016 में जरनल ऑफ पेडियाट्रिक्स में छपे एक अध्ययन के अनुसार, समय से पहले पैदा हुए जिन शिशुओं को पहले 28 दिन तक स्तनपान कराया गया, उनकी याद्दाश्त, आईक्यू लेवल व मोटर फंक्शन मां का दूध नहीं पीनेवाले बच्चों से बेहतर था. यानी अब आपको स्तनपान कराने का एक और फ़ायदा पता चल गया. मात्र कुछ हफ़्तों तक स्तनपान कराने से बच्चे की बुद्धि व उसके मोटर स्किल्स में अधिक तेज़ी से विकास होता है.
संगीत सुनने की आदत डालें
जितनी जल्दी हो सके, बच्चे में संगीत सुनने की आदत डालें, इससे उसके मस्तिष्क का तेज़ी से विकास होता है. संगीत बौद्धिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है. संगीत सुनने से डोपामाइन नामक हार्मोन का स्राव होता है, जिससे सीखने की इच्छाशक्ति बढ़ती है. म्यूज़िक पढ़ाई को मज़ेदार बनाने में मदद करता है, जिससे बच्चा कोई भी चीज़ जल्दी सीख लेता है. कम उम्र में संगीत सीखने से बच्चे के मस्तिष्क के विकास में भी सार्थक बदलाव आता है. वर्ष 2006 में छपे एक अध्ययन के अनुसार, म्यूज़िकल ट्रेनिंग और मस्तिष्क के विकास के बीच गहरा कनेक्शन होता है. अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि छोटी उम्र से जो बच्चे संगीत की शिक्षा लेते हैं, उनका दिमाग़ अन्य बच्चों की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से विकसित होता है. वर्ष 2013 में जरनल ऑफ न्यूरोसाइंस में छपे एक अन्य अध्ययन के अनुसार, 7 साल की उम्र से पहले बच्चों को संगीत की शिक्षा देने से उनके मस्तिष्क के विकास में मदद मिलती है. जो बच्चे कम उम्र में म्यूज़िक सीखने लगते हैं, उनके लेफ्ट व राइट साइड ब्रेन के बीच बेहतर कनेक्शन होता है.
टीवी टाइम नियंत्रित रखें
चाहे आप कितने भी व्यस्त क्यों न हों, इसे बच्चे के अधिक टीवी या मोबाइल फोन देखने का बहाना न बनने दें. अमेरिकन अकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स के अनुसार, दो वर्ष से छोटे बच्चों को बिल्कुल भी टीवी नहीं देखना चाहिए. उससे बड़े बच्चों को भी दो घंटे से ज़्यादा टीवी या स्मार्टफोन नहीं देखना चाहिए. ज़्यादा टीवी देखने से उनकी पढ़ाई पर असर तो पड़ता ही है, उन्हें रचनात्मक खेलों के लिए भी कम समय मिलता है और साथ ही मोटापा, हिंसक प्रवृती, नींद व बिहेवियरल प्रॉब्लम्स होते हैं. इतना ही नहीं, ज़्यादा टीवी देखने के कारण बच्चे और अभिभावक के बीच में कम बातचीत होती है, जो बच्चे के संपूर्णविकास में बाधा बन सकती है. एक अभिभावक के रूप में आपके लिए ज़रूरी है कि आप बच्चे के साथ समय व्यतीत करें, न कि उसे टीवी या मोबाइल फोन देखने में व्यस्त रखें.
बच्चे को पढ़कर सुनाएं
बच्चे में कम उम्र में ही किताबें पढ़ने की आदत डालें. ऐसा करने के लिए शुरुआत से ही उसे कुछ न कुछ पढ़कर सुनाएं. सोने जाने से पहले बच्चे को कुछ म़जेदार किताबें पढ़कर सुनाएं. हालांकि छोटे बच्चे सभी शब्दों को नहीं समझ पाते, लेकिन उन्हें इस बात का ज्ञान होता है कि किताब, मैग्ज़ीन्स या अख़बार से जानकारी मिलती है. इससे किताबों में उनकी रुचि बढ़ती है. वर्ष 2015 में छपे एक अध्ययन के अनुसार, बच्चे को किताबें पढ़कर सुनाने से भाषा व साहित्य पर उनकी पकड़ मज़बूत होती है.
व्यायाम है ज़रूरी
चाहे बच्चा हो या वयस्क इंसान, व्यायाम सबके लिए ज़रूरी है, यहां तक कि छोटे शिशुओं के लिए भी. वास्तव में नियमित रूप से व्यायाम करने से बच्चे के मानसिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे यद्दाश्त व सीखने की क्षमता तेज़ होती है और बड़ी उम्र में मानसिक दुर्बलता व डिमेंशिया होने का ख़तरा कम होता है. व्यायाम करने से मस्तिष्क में ऑक्सिजन व ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे नर्व फंक्शनिंग बेहतर होती है और बच्चे का संपूर्ण शारीरिक व मानसिक विकास होता है. वर्ष 2008 में एज्युकेशनल साइकोलॉजी में छपे एक अध्ययन के अनुसार, सिस्टमेटिक एक्सरसाइज़ प्रोग्राम्स विशेष प्रकार के मेंटर प्रोसेसिंग के विकास में मदद करते हैं, जिससे बच्चे को पढ़ाई व अन्य चुनौतियों में बेहतर प्रदर्शन करने में मदद मिलती है. वर्ष 2010 में छपे एक अन्य अध्ययन के अनुसार, जो बच्चे शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं, उनका हिप्पोकैम्पस (ब्रेन का वह भाग, जो याद्दाश्त, इमोशन व मोटिवेशन नियंत्रित करता है) बड़ा होता है और वे मेमोरी टेस्ट में अन्य बच्चों की तुलना में ज़्यादा अच्छा प्रदर्शन करते हैं.
बच्चे को हेल्दी खाना खिलाएं
बचपन से ही बच्चों में हेल्दी खाना खाने की आदत डालनी चाहिए. बढ़ते हुए बच्चे के लिए पौष्टिक खाना स़िर्फ उनके शारीरिक विकास के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक विकास के लिए भी ज़रूरी होता है. उन्हें पालक, ओटमील, डार्क चॉकलेट, संतरा, तरबूज़ इत्यादि खिलाने की आदत डालें. जंक फूड्स, प्रोसेस्ड फूड, फास्ट फूड्स व कोल्ड ड्रिंक्स इत्यादि से दूर रखें. ऐसे फूड्स बच्चे को पोषक तत्व प्रदान नहीं करते और उसके स्वास्थ्य को नुक़सान भी पहुंचाते हैं. साथ ही बच्चे को हाथ से खाने के लिए प्रोत्साहित करें, इससे उसका मोटर स्किल डेवलप होता है. बच्चे का हैंड-आई कॉर्डिनेशन डेवलप होता है और वो खाने के टेक्सचर को समझने लगता है. चाहे कुछ भी हो जाए, बच्चे को टीवी देखते हुए खाने की आदत बिल्कुल न डालें.
क्रिएटिव खिलौने ख़रीदें
बाज़ार में अनगिनत खिलौने उपलब्ध हैं, लेकिन बच्चे के बेहतर मानसिक विकास के लिए उसमें क्रिएटिव टॉयज़ खेलने की आदत डालें. सही खिलौने से खेलने से लैंग्वेज, कम्यूनिकेशन व सोशल स्किल्स बेहतर होता है. ध्यान रखें कि खिलौने ज़्यादा महंगे नहीं होने चाहिए. खिलौने सादे व सुरक्षित होने चाहिए और उससे बच्चे की कल्पना को विकसित होने का मौक़ा मिलना चाहिए. एक बात ध्यान रखें, खिलौना ऐसा होना चाहिए, जिससे खेलते समय उसके हाथ भी इंगेज हों.
बच्चे के साथ समय बिताएं
अंतिम, मगर सबसे ज़रूरी शिशु के मानसिक विकास के लिए आपका उसके साथ पर्याप्त समय व्यतीत करना बेहद ज़रूरी है. स्पीच डेवलपमेंट जन्म के साथ शुरू हो जाता है. मांओं को स्तनपान कराते समय बच्चे से बात करना चाहिए या फिर उसे गाना गाकर सुनाना चाहिए. बाहर जाने पर चीज़ों की तरफ़ हाथ से इशारा करके उनके नाम बताएं. उन्हें घुमाते समय, पार्क में व खाना खिलाते समय उससे बातें करें. अगर बच्चा कुछ इशारा करता है या कहने की कोशिश करता है तो उसकी बात ध्यान से सुनें. बच्चे के स्ट्रेस को कम करने व उसे सुरक्षा का एहसास दिलाने के लिए उसके शरीर की मालिश करें.
Source - Meri Saheli