सोनम वांगचुक का नाम इस वर्ष के रेमन मैगसायसाय पुरस्कार के विजेताओं में शामिल है. वांगचुक ने आर्थिक प्रगति के लिए विज्ञान और संस्कृति का इस्तेमाल करने की पहल से लद्दाखी युवकों के जीवन में सुधार किया. वांगचुक उन छह लोगों में शामिल हैं जिन्हें गुरुवार को इस पुरस्कार का विजेता घोषित किया गया. बता दें कि रेमन मैगसायसाय को एशिया का नोबेल पुरस्कार माना जाता है.
बता दें कि फिल्म 3 इडियट्स में आमिर खान ने जिस फुंगशुक वांगडू का किरदार निभाया था, वह बिल्कुल सोनम वांगचुक से मिलता जुलता रहा है. वांगचुक खुद कहते हैं कि साल 2008 में 3 इडियट्स की शुटिंग से पहले एक अवार्ड फंक्शन में उनकी आमिर से मुलाकात हुई थी. उस फंक्शन में वांगचुक के जीवन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री भी दिखाई गई थी. वांगचुक कई मौकों पर कह चुके हैं कि मैं यो तो नहीं कहूंगा कि फिल्म का किरदार मुझसे प्रेरित था, लेकिन हां इतना जरूर कहूंगा कि मुझसे प्रभावित जरूर लगता है.
लेह में खोला कोचिंग सेंटर
एक सितंबर 1966 को जन्मे सोनम वांगचुक की कहानी भी 3 इडियट्स के फुंगशुक वांगचुक की कहानी से मिलती जुलती ही है. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही उनका पिता से विवाद हो गया था. वे बताते हैं कि वह शुरू से ही मैकेनिकल इंजीनियरिंग करना चाहते थे, लेकिन उनके पिता की इच्छा थी कि वह सिविल इंजीनियरिंग करें. एनआईटी श्रीनगर से इंजीनियरिंग की शिक्षा के बाद वह घर से निकल गए. साइंस और मैथ्स के अच्छे स्टूडेंट रहे हैं, इसे देखते हुए लेह में कोचिंग सेंटर खोलने की योजना बनाई और शुरू कर दी.
दो साल में चार साल की पढ़ाई का खर्च
सोनम वांगचुक का कोचिंग कुछ ही समय में काफी चर्चित हो गया. दो महीने में ही उनके चार साल की पढ़ाई का खर्च निकल गया था. इसी दौरान उनके दिमाग में एक बात आई कि होनहार बच्चे भी फेल हो जाते हैं या कर दिया जाता है. इसके बाद उन्होंने शिक्षा पर काम करने की योजना बनाई और प्रयास शुरू कर दिया. उन्होंने सेकमॉल अभियान शुरू किया और शिक्षा पर काम करने लगे.
सर्वशिक्षा अभियान से पहले शुरू किया प्रयास
सोनम वांगचुक कई वर्षों से बर्फीले रेगिस्तान में बच्चों के शिक्षा पर काम कर रहे हैं. साल 1988 में अपनी टीम के साथ शुरू किया उनका यह अभियान पूरी दुनिया में एक मिसाल के तौर पर देखा जाता है. इसे स्टूडेंट एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख यानी सेकमॉल कहा जाता है. खास बात यह है कि इनका अभियान सर्वशिक्षा अभियान से 10 साल पहले ही शुरू हो चुका था.
फेल छात्रों की बदली दुनिया
सोनम वांगचुक ने अपने अभियान में उन छात्रों को चुना जो परीक्षाओं में फेल हो चुके होते हैं. उनकी उपलब्धी ये है कि इनमें कई ऐसे छात्र हैं जो आगे चलकर बड़े वैज्ञानिक बने. इनमें से कई ने खुद का बिजनेस स्टार्ट किया और टाइकुन के तौर पर जाने-जाने लगे. वहीं, कई छात्र दूसरी जगहों पर बड़े ओहदे पर पहुंचे. 1994 में वांगचुक के नेतृत्व में ‘आपरेशन न्यू होप’ शुरू किया गया जिसका उद्देश्य साझेदारी संचालित शैक्षिक सुधार कार्यक्रम को विस्तारित करना और उसे समेकित करना था.
वैकल्पिक विश्वविद्यालय पर कर रहे हैं काम
सोनम वांगचुक हमेशा कहते हैं कि उन्होंने शौक के कारण इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. उन्होंने अपने पढ़ाई के अनुभव को देखते हुए ही वैकल्पिक विश्वविद्यालय की योजना पर काम कर रहे हैं. इसमें बकायदा एक वर्कशॉप की तरह बच्चे काम करेंगे, जिसमें कोई फीस नहीं होगी.
पानी की दिक्कतों का सामना
सोनम जब लेह में काम करने लगे तो वहां उन्हें पीने के पानी की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. उन्होंने देखा कि यहां खेती का स्तर भी काफी खराब है. ऐसे में उन्होंने अपनी टीम और कुछ स्टूडेंट्स के साथ पानी और खेती के लिए अभियान शुरू कर दिया. शुरू में तो उन लोगों का काफी परेशानी हुई, लेकिन वांगचुक के पास आइडियाज का ठिकाना था. उन्हें यहां भी एक नायाब तरीका निकाल लिया.
खेती और पौधों के लिए निकाला तरीका
खेती और पौधों के लिए वांगचुक ने स्थानीय लोगों का सहारा लिया. उन्होंने बर्फ के स्तूप बनाने का आइडिया जनरेट किया और लोगों से कहा कि वे 40 मीटर तक ऊंचे स्तूप बनाएं. इससे एक स्तूप से 10 हैक्टेयर जमीन की सिंचाई का काम शुरू हुआ. इतना ही नहीं एक स्तूप से करीब एक करोड़ 60 लाख लीटर पानी की व्यवस्था होने लगी. इसके बाद उन्होंने वहां स्तूप का पूरा पायलट ही बना लिया. सर्दियों में बनाए गए इन स्तूप के बर्फ जून-जुलाई तक बने रहते थे.
सोलर पॉवर से रोशन जगह
वांगचुक ने एक इंटरव्यू में कहा कि स्तूप बनाने की प्रेरणा उन्हें चेवांग के नॉर्फेल से मिली. नॉर्फेल ने कृत्रिम ग्लेशियर्स बनाए थे. लेह जैसे इलाके में उन्होंने पेड़ और बकीचे बनाए, जो लोगों के लिए आश्चर्य का विषय बन गया. अपने फाउंडेशन और स्कूल को उन्होंने सोलर पॉवर से रोशन कर दिया. वहां टीवी, कंप्यूटर और दूसरी इलेक्ट्रॉनिक चीजें भी इसी से चलती हैं.
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