सुप्रीम कोर्ट में अक्टूबर 2016 से सितंबर 2017 के बीच में कुल 61,520 मुकदमे दर्ज हुए. इन मुकदमों को दर्ज करने में इस्तेमाल किए गए कागज पर यदि दोनों तरफ प्रिंटिंग की गई होती तो 2,953 पेड़ और 24,600 टैंकर पानी (एक टैंकर में 1,000 लीटर) को बचाया गया होता. यह आकलन नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर अकाउंटबिलिटी एंड सिस्टेमिक चेंज (सीएएससी) ने किया.
5 सितंबर, 2018 को सीएएससी ने इस आकलन के साथ एक जनहित याचिका दायर करते हुए कोर्ट से कागज के दोनों तरफ प्रिंटिंग पर निर्देश मांगा. इंडिया स्पेंड के मुताबिक इससे पहले 8 अगस्त, 2018 को भी सीएएससी ने जनहित याचिका दायर करते हुए अपना आकलन कोर्ट के सामने रखते हुए कहा कि यदि कोर्ट याचिका में इस्तेमाल कागज के दोनों तरफ प्रिंट की अनुमति दे तो पूरे देश की बड़ी-छोटी अदालतों में कागज की बचत के जरिए 27,000 पेड़ और 2,000 मिलियन लीटर पानी को प्रति महीने बचाया जा सकता है.
जनहित याचिका में कोर्ट के कामगाज में इस्तेमाल हो रहे है कागज को बचाने के लिए यह भी सुझाया गया है कि मौजूदा समय में कोर्ट याचिका में डबल स्पेस टाइपिंग के साथ वाइड मार्जिन इस्तेमाल करने का मानदंड स्थापित है. वहीं लाइन स्पेसिंग (दो लाइनों के बीच जगह) के लिए कोर्ट का निर्देश है कि 2 की जगह यदि 1.5 कर दिया जाए तो कोर्ट में इस्तेमाल हो रहे कुल कागज में 25 फीसदी कागज बचाया जा सकेगा. वहीं मौजूदा समय में इस्तेमाल हो रहे फॉन्ट साइज को भी कम करने से कम से कम 30 फीसदी कागज की बचत की जा सकती है.
गौरतलब है कि कोर्ट और कचहरी में कागज पर एक साइड की टाइपिंग का प्रचलन टाइप राइटर के समय से चला आ रहा है. वहीं लाइन स्पेसिंग समेत बड़े फॉन्ट का इस्तेमाल इसलिए किया जाता था कि ड्राफ्ट में त्रुटि पाए जाने पर लिखी गई लाइन के ऊपर संशोधन किया जा सके.
एक जानकार के मुताबिक एक पेड़ से 8,333 पेपर शीट तैयार होती है. इन शीट्स को तैयार करने में लगभग 10 लीटर पानी का इस्तेमाल होता है. लिहाजा, कोर्ट में 61,520 मुकदमों में यदि सिर्फ दो पक्ष हैं, तो याचिका की 8 प्रतियों की जरूरत पड़ती है. चार का इस्तेमाल कोर्ट के लिए होता है और एक-एक कॉपी दोनों पक्षों और उनके वकीलों के लिए जरूरी है. यदि सभी याचिका कम से कम 100 पेज की है तो 49.2 मिलियन की जरूरत पड़ेगी.
इससे साफ है कि 49.2 मिलियन कागज की शीट तैयार करने में 5,906 पेड़ों को काटने की जरूरत पड़ेगी. लिहाजा, यदि कागज के दोनों तरफ प्रिंटिंग की मंजूरी दे दी जाए तो सीधे तौर पर 2,953 पेड़ों और 246 मिलियन लीटर पानी को बचाया जा सकता है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में पेपर को बचाने की पहल 2013 से चल रही है. इससे पहले फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट नेपर्यावरण बचाने के लिए दो बड़ी पहल की थी. पहला, कोर्ट के फैसले की प्रिंटेड कॉपियों की संख्या घटाई. किसी भी फैसले की अधिकतम 14, 16 या 18 कॉपियां ही छापी जाती है, वह भी ऐसी सूरत में जब जज कहें कि कोर्ट के फैसले की प्रिंटिंग जरूरी है. इसी समय प्रावधान किया गया था कि जज और वकील कोर्ट की वेबसाइट से फैसले को डाउनलोड कर अपना काम करेंगे.
Source - Aaj Tak