1971 में भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात उत्पन्न हो चले थे। पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी का आंदोलन तेज हो चुका था। उन पर पाकिस्तानी सेना का दमन जारी था। पाक सेना के अत्याचार से बचने के लिए भारत में क़रीब डेढ़ करोड़ शरणार्थी (बंगाली और अल्पसंख्यक हिंदू) भारत में शरण लिए हुए थे। भारत में शरणार्थियों की समस्या जटिल होती जा रही थी। पाकिस्तान के इस आंतरिक हालात का सीधा असर भारत पर पड़ रहा था। भारत ने दुनिया के मुल्कों से मदद की गुहार लगाई, लेकिन उसकी बात अनसूनी कर दी गई। भारत इससे निपटने के लिए कुछ फैसला लेता, तब तक पाकिस्तान की सेना ने भारत पर आक्रमण कर दिया। 13 दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना की जीत हुई। इस युद्ध ने भारत को दक्षिण एशिया में एक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया। भारत के युद्ध कौशल का लोहा दुनिया ने माना। इतना ही नहीं इस युद्ध के बाद तत्कालीन देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारत का आयरन लेडी कहा गया।
पाकिस्तान ने शुरू की जंग
23 नबंबर, 1971 को पाकिस्तान में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। पाक सेना को युद्ध के लिए अलर्ट कर दिया गया। उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्या खान थे। आपातकाल के दसवें दिन यानी तीन दिसंबर की शाम को पाकिस्तानी वायु सेना ने भारत पर हमला बोल दिया। पाकिस्तान वायु सेना के फाइटर भारतीय सीमा में 480 किलोमीटर अंदर तक घुस गए। पाकिस्तान ने देश के 11 वायुसेना बेस को निशाना बनाया। उत्तर प्रदेश का आगरा जनपद पाकिस्तान वायु सेना की जद में था। इस हमले में ताजमहल पर संकट उत्पन्न हो गया था। सेना ने ताजमहल को घास-फूस व पत्तियों, बेलों व लताओं से ढक दिया।
इस हवाई हमले के बाद भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा कि ये पाकिस्तान की ओर से किए गए हवाई हमले भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा है। हमले के बाद भारतीय वायु सेना ने मोर्चा संभाल लिया। देर रात पाकिस्तान पर जवाबी कार्रवाई करते हुए हमला बोल दिया। अगले दिन इन जबावी हमलों को व्यापक रूप दिया गया। इंदिरा गांधी ने सेना को कूच करने का आदेश दिया। इसके साथ ही भारत-पाक युद्ध की आधिकारिक घोषणा की गई। भारतीय सेना की सभी विंग ने मोर्चा खोल दिया गया। थल, वायु और नौसेना ने मोर्चा संभाल लिया।
ऐसे बने युद्ध के हालात
दरअसल, वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसे हालात से भारत कतई अछूता नहीं था। पाक सेना के दो प्रमुख अफसर एड्मिरल सैयद मुहम्मद एहसान और लेफ़्टि जनरल साहबज़ादा याकूब खान के इस्तीफे के बाद पाकिस्तानी सेना ने बंगाली नागरिकों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। इनके निशाने पर अल्पसंख्यक हिंदू भी थे। पाकिस्तान सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में व्यापक नरसंहार किया। पाकिस्तान से बड़ी तादाद में लोगों ने भारत में श्ारण ली। भारत सरकार ने पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, असम, मेघालय एवं त्रिपुरा में बड़े स्तर पर सीमावर्त्ती क्षेत्रों में शरणार्थी कैंप भी लगाए। लाखों पाकिस्तानी शरणार्थियों के प्रवेश से भारत के सामने विकराल समस्या उत्पन्न हो गई। लड़ाई से पहले भारत में बांग्लादेश के क़रीब डेढ़ करोड़ शरणार्थी पहुँच गए थे। इन हालातों से ध्यान बांटने के लिए पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया।
पाकिस्तान के मुक्ति संघर्ष को मिला भारत का समर्थन
इस समस्या को लेकर भारत ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से सहयोग की अपील की। तत्कालीन विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह कई मुल्कों से सहयोग की अपील की, लेकिन कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। इस बीच 27 मार्च, 1971 को इंदिरा ने पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संघर्ष के लिए अपनी सरकार के पूर्ण समर्थन देने का अाश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि लाखों शरणार्थियों को भारत में शरण देने से ज्यादा अच्छा होगा कि पाकिस्तान से युद्ध करके इस संघर्ष को विराम दिया जाए। इंदिरा ने यह कहकर विश्व विरादरी के समक्ष भारत के स्टैंड साफ कर दिया था।
और पाकिस्तान सेना ने किया समर्पण
आखिरकार पाकिस्तान सेना ने भारतीय सेना के समक्ष आत्पसमर्पण कर दिया। समर्पण होने पर भारतीय सेना ने लगभग 90,000 से अधिक पाक सैनिक एवं उनके बंगाली सहायकों को युद्धबंदी बना लिया। यह द्वितीय विश्व युद्ध से अब तक का विश्व का सबसे बड़ा समर्पण था। इनके अलावा शेष बंदी सामान्य नागरिक थे, जो या तो इन सैनिकों के निकट संबंधी थे या उनके सहायक थे। हमुदूर रहमान आयोग एवं युद्धबन्दी जाँच आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान द्वारा सौंपी गई युद्धबंदियों की सूची में सैनिकों के अलावा 15,000 बंगाली नागरिकों को भी युद्धबंदी बनाया गया था। भारत के पूर्वी के कमान के चीफ लेफ़्टि जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और पाकिस्तान के पूर्वी कमान के चीफ लेफ़्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी के बीच ढाका में समर्पण अभिलेख पर हस्ताक्षर हुए। जब दोनों सेना के अफसर यहां हस्ताक्षर के लिए पहुंचे तो यहां खड़ी भारी भीड़ ने भारत के पक्ष में और पाकिस्तान विरोधी नारे लगाए।
क्या है मुक्तिवाहिनी
मुक्तिवाहिनी उन सभी संगठनों का सामूहिक नाम है, जिन्होंने 1971 में पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध संघर्ष करके बांग्लादेश को पाकिस्तान से स्वतंत्र कराया। बांग्लादेश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान मुक्ति वाहिनी का गठन पाकिस्तान सेना के अत्याचार के विरोध में किया गया था। 1969 में पाकिस्तान के तत्कालीन सैनिक शासक जनरल अयूब के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में असंतोष बढ़ गया था। ऐसे समय में शेख मुजीबुर रहमान के आंदोलन के दौरान 1970 में यह अपने चरम पर था। मुक्ति वाहिनी को भारतीय सेना ने समर्थन दिया था।
Source - Jagran