जाने-माने साहित्यकार, समीक्षक और पत्रकार श्याम कश्यप नहीं रहे. वे लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे. उनकी 4 मेजर सर्जरी हो चुकी थीं, फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी. वे 17 माह 21 दिन तक बीमारी से लड़ते रहे.
श्याम कश्यप का जन्म 21 नवंबर, 1948 को पंजाब के नवा शहर में हुआ था. उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए करने के बाद पत्रकारिता एवं जनसंचार में पीएचडी की. इसके बाद दिल्ली विश्वविद्यालय समेत कई राष्ट्रीय यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर रहे. इस दौरान लगभग 40 साल से अधिक समय तक प्रिंट और टीवी पत्रकारिता में सक्रिय रहे और कई अखबारों और मीडिया संस्थानों में भी प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत रहे.
कश्यप पत्रकारिता और साहित्य के क्षेत्र में 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें 'गेरू से लिखा हुआ नाम', 'लहू में फंसे शब्द', 'मुठभेड़', सृजन और संस्कृति, साहित्य की समस्याएं और प्रगतिशील दृष्टिकोण, मार्क्स, एलाइनेशन सिद्धान्त और साहित्य, परसाई रचनावली, हिन्दी साहित्य का इतिहास, रास्ता इधर है, स्वाधीनता संग्राम: बदलते परिप्रेक्ष्य, भारतीय इतिहास और ऐतिहासिक भौतिकवाद, पश्चिमी एशिया और ऋग्वेद, भारतीय नवजागरण और यूरोप,पहल का फांसीवाद-विरोधी अंक प्रमुख हैं.
श्याम सर्वप्रथम प्रकृति के कवि थे, फिर मनुष्य के, फिर समाज के, फिर सम्पूर्ण मनुष्यता क्या, सम्पूर्ण पृथ्वी के. उनकी ऐन्द्रिय संवेदना जिन विलक्षण और उदात्त बिम्बों में अभिव्यक्त होती हैं, वे हमारे भीतर उस अवकाश की सृष्टि कराते हैं, जो मानवीय आत्मा के पंख फैलाने के लिए आवश्यक हैं और जो वर्तमान युग में लगातार कम होता जा रहा है. जहां तक मनुष्य से लेकर सम्पूर्ण पृथ्वी तक की बात है, श्याम ने अपनी कविताओं में उसके अनेकानेक आयामों को समेटा है.
Source - Aaj Tak