ऐसा नहीं है कि डॉक्टर गणेश सिर्फ पैदा हुई लड़की के मां-बाप से अस्पताल की फीस नहीं लेते, बल्कि जो लोग बेटी पैदा होने से निराश होते हैं, उनके साथ बेटी के जन्म का जश्न भी मनाते हैं. बच्ची के माता-पिता को फूल दिया जाता है, अस्पताल में मोमबत्तियां जलाई जाती हैं और केक भी काटा जाता है.
एक महिला चंदाबाई ने बताया कि वो चाहती थीं कि जब उनकी बेटी मां बने, तो उसे लड़का ही पैदा हो. पर एक दिन वो अस्पताल में डॉक्टर गणेश से मिलीं और उनसे मिलने के बाद चंदाबाई और उनके परिवार वाले अब न सिर्फ लड़की पैदा होने से खुश हैं, बल्कि उसे पढ़ाना भी चाहते हैं. यहां तक कि उन लोगों ने सोच लिया है कि वो अपनी जमा पूंजी बेटी की पढ़ाई पर लगाएंगे, ना कि उसकी शादी में.
आज के दौर में डॉक्टर गणेश जैसे लोग मिलना बहुत मुश्किल है क्योंकि उनकी दरियादिली भले ही लोगों में खुशियां बांट रही है, पर उनके अस्पताल को जरूर नुकसान उठाना पड़ता है. जैसे अभी तक वो ऐसी करीब 1, 100 डिलीवरी करवा चुके हैं. आमतौर पर वो नॉर्मल डिलीवरी का 10 हजार और सी -सेक्शन यानी सीजेरियन डिलीवरी का 25 हजार रुपये लेते हैं. डॉक्टर गणेश लड़कियों के पैदा होने पर पैसे नहीं लेते, इसलिए उनकी कमाई में काफी घाटा हो जाता है, पर उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं है.
डॉक्टर गणेश कहते हैं, 'मैं पिछले 7-8 साल से ऐसा कर रहा हूं. हम सरकार से कोई मदद नहीं लेते. मेरे पास सारे कागजात हैं, मैंने किसी से कोई डोनेशन भी नहीं लिया. सब यही पूछते हैं कि मैं मुफ्त इलाज कैसे कर पाता हूं. मैं उन पैसों से खर्च निकालता हूं, जो मुझे लड़का पैदा होने के बाद बतौर फीस मिलते हैं. बाकी मरीज भी जो फीस भरते हैं, उससे मैं दवाई वगैरह लेता हूं. मैंने अपना स्टाफ भी काफी कम कर दिया है. पहले कई लोग थे, पर अब कम लोग हैं, सैलरी में ज्यादा पैसे नहीं जाते. पिछले तीन-चार साल से तो मैं ही नाइट ड्यूटी कर रहा हूं. एक्स्ट्रा ड्यूटी भी मैं ही करता हूं.'
भ्रूण हत्या यानी गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग जांच कर उसे नष्ट कर देने के बारे में लोग बहुत बातें करते हैं, पर जब इस पर अमल करने की बारी आती है, तो कोई कुछ नहीं करता. यहां तक कि बड़े-बड़े सितारे भी इस मसले पर काफी जागरुकता पहुंचाने की कोशिश करते हैं, पर जो काम डॉक्टर गणेश ने किया वो शायद ही कोई कर पाए.
इसकी एक वजह ये भी है कि वो इस मुद्दे की गहराई और इससे होने वाले नुकसान के बारे में बखूबी जानते हैं. डॉक्टर गणेश की एक बेटी है, जिस पर वो जान छिड़कते हैं और उनका यही मकसद है कि देश की हर बेटी को उतना ही प्यार मिले. इसी कारण उन्होंने जनवरी 2012 में एक अभियान शुरू किया था, जिसका नाम था 'मुल्गी वाचवा अभियान', ये कन्या भ्रूण हत्या रोकने की कोशिश थी. उस दिन से आज तक डॉक्टर गणेश राख के अस्पताल में लड़कियों के पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है और पैसे नहीं लिए जाते.
जब हमने डॉक्टर गणेश राख से बात की तो उन्होंने बताया, "मैंने ये अस्पताल 2007 में शुरू किया था. मैं अक्सर देखता था कि जब किसी को लड़का पैदा होता था तो जश्न का माहौल छा जाता. लोग मिलने आते, मां के लिए घर से स्वादिष्ट खाना बन कर आता. यहां तक कि लोग बिल भी बड़ी खुशी से भरते थे. पर जब बेटी पैदा होती तो ऐसा लगता था कि सबको सदमा लग गया हो. मैंने पतियों को डिलीवरी के बाद अपनी पत्नियों को मारते हुए भी देखा है. वो अपनी पत्नी के मां-बाप को गालियां देते, कि ये देखो तुम्हारी बेटी ने लड़की पैदा की है. कोई उस महिला से मिलने ही नहीं आता था. मां भी इतनी दुःखी हो जाती थी कि बच्ची को दूध भी नहीं पिलाती. जब अस्पताल का बिल भरने की बात आती, तो उनमें लड़ाई हो जाती कि तुम पैसे दो, मेरे पास पैसे नहीं हैं. ये सब देखकर मैंने सोचा कि अगर लड़की पैदा होने पर लोग इतने दुःखी हो जाते हैं, तो मैं इसकी खुशी मनाऊंगा. अगर कोई नवजात बच्ची का इलाज नहीं कराना चाहता, तो मैं मुफ्त में इलाज करूंगा और किसी लड़की के पैदा होने पर पैसे नहीं लूंगा."
डॉक्टर गणेश ये भी बताते हैं कि अब उनकी मुहिम में आगरा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र से भी डॉक्टर जुड़ गए हैं. डॉक्टर गणेश कहते हैं, 'धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है, मैं खुद देख रहा हूं. अब लड़की पैदा होने पर कम ही लोग रोते हैं. बहुत लोग खुशियां मनाते हैं. देश भर में कई और डॉक्टरों ने भी लड़की पैदा होने पर फीस लेना बंद कर दिया है. जो लोग पहले मुझ पर हंसते थे, अब मेरी कोशिश में मेरे साथ जुड़ गए हैं.'
औरत होना हर कदम पर एक लड़ाई लड़ना है. और औरत की पहली लड़ाई तो पैदा होना ही है. डॉक्टर गणेश औरतों की लड़ाई में उनकी मदद कर रहे हैं.
Source - Odd Nari