छपाक, दीपिका की फिल्म. इसमें वो एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी का किरदार निभा रही हैं. पर देश में ऐसी कितनी महिलाएं और लड़कियां हैं, जो एसिड अटैक से पीड़ित हैं पर उन्हें कोई नहीं जानता और न ही उन्हें आर्थिक मदद मिलती है. ऐसे ही एक है गुलशाना, अलीगढ़ से कई किलोमीटर दूर एक गांव में रहती है. इसे अभी तक वो मुआवजा नहीं मिला है, जो 15 दिन के अंदर मिल जाना चाहिए. इसके साथ न तो छेड़छाड़ हुई है, न रेप हुआ है, न ही इसके परिवार को कोई सदस्य किसी दुर्घटना का शिकार हुआ है. बल्कि इसके ऊपर तेजाब फेंका गया है. ये एक एसिड अटैक सर्वाइवर है. जो पिछले चार महीने से उधार लेकर जैसे-तैसे इलाज करवा रही है.
क्या है पूरा मामला?
ऑडनारी ने गुलशाना से बात करने की कोशिश की. पर उससे बात नहीं हो पाई. क्योंकि एसिड पड़ने से चेहरे का आधा हिस्सा खराब हो चुका है और इन्हें बोलने में थोड़ी मुश्किल होती है. हमने उसके भाई अरमान से बात की. उसने हमें बताया कि-
'पापा की मिलाई करके आ रहे थे. 17 फरवरी 2019 का दिन था. हमारे पापा जेल में हैं. हम और हमरी बहन जब घर लौट रहे थे, तो रास्ते में तीन लोगों ने हम पर तेजाब फेंक दिया. हम तो बच गए पर गुलशाना के शरीर का बांया हिस्सा जल गया. उसकी बांई आंख चली गई. बोल नहीं पाती. चेहरा आधा जल गया. एक हाथ मुड़ नहीं पाता. गला चिपक गया. इसका इलाज कई जगह कराया, पर अभी तक सरकारी मदद नहीं मिली है. आरोपियों को जेल भी हो गई है. हमारी बहन की उम्र 14 साल है. जब वो 4 या 5 साल की रही होगी, तब ही उसे पोलियो हो गया था, जिसमें एक हाथ और पैर ने काम करना बंद कर दिया था. इसी वजह से उसका आधार कार्ड भी नहीं बन पाया. चार महीने हो गए हैं और सरकार की तरफ से एक भी रुपिया नहीं मिला है.'
इस मामले में हमने अलीगढ़ DPO (डिस्ट्रिक्ट प्रोबेशन ऑफिसर) स्मिता सिंह से बात की. उन्होंने बताया कि
'इस मामले के बारे में हमें आज ही मालूम हुआ है. एसिड अटैक को जो मुआवजा मिलता है, वो रानी लक्ष्मी बाई महिला कोष के तहत मिलता है. उसमें भी तीन विभाग शामिल होते हैं. पुलिस विभाग में FIR दर्ज होती है, फिर वहां से केस अपलोड होकर मेडिकल के पास जाता है, वहां से जब वेरिफिकेशन हो जाता है. फिर फाइनली डिस्ट्रिक्ट लेवल पर हमारे पास आता है. फिर हम आगे कार्यवाही करते हैं. तो अभी ये केस पुलिस विभाग की तरफ से अपलोड नहीं हुआ है. जैसे ही होता है हम आगे का प्रॉसेस करेंगे.'
मुआवजे को लेकर क्या प्रावधान है?
नेशनल सर्विस लीगल अथॉरिटी के मुताबिक, एसिड अटैक सर्वाइवर को राज्य सरकार तीन लाख रुपए देगी. एक लाख 15 दिन में. और उसके बाद दो लाख दो महीने के अंदर. वहीं, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय रिलीफ फंड की ओर से भी एक लाख रुपए एसिड अटैक सर्वाइवर को दिया जाएगा.
कैसे मिलेगा ये मुआवजा?
एक गैर-सरकारी संस्था के लीगल अथॉरिटी, जिनका नाम दुर्गा प्रसाद है, उनसे हमने बात की. उन्होंने बताया कि जब किसी पर एसिड अटैक होता है, तो FIR होती है. 326 ए के तहत केस बनता है. और फिर इस मामले के बारे में डिस्ट्रिक्ट लीगल सर्विस अथॉरिटी और स्टेट लीगल सर्विस अथॉरिटी को बताया जाता है. उसके बाद सरकारी प्रक्रिया शुरू होती है. तय समय-सीमा पर विक्टिम/सर्वाइवर के खाते में पैसा भेज दिया जाता है. जिससे उन्हें इलाज करवाने में मदद मिल सके.
एसिड की खरीद और बिक्री को लेकर क्या नियम हैं?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, कोई भी एसिड यानी तेजाब बिना किसी आईडी प्रूफ के नहीं खरीद सकता. एसिड खरीदने वाले के पास उसका एड्रेस प्रूफ और आईडी प्रूफ होना बहुत जरूरी है. साथ ही उसमें उसकी फोटो भी क्लीयर होनी चाहिए. जिससे कल को कोई मामला हो, तो आसानी से उस बंदे को ट्रेस किया जा सके. कोई भी नाबालिग बच्चा एसिड नहीं खरीद सकता और न ही बेच सकता है. अगर ऐसा होता भी है तो पुलिस को इस बारे में जरूर बताएं.
एसिड होता क्या है?
एसिड/तेजाब. एक तरह का सल्फ्यूरिक एसिड. जिसका इस्तेमाल कारखाने में या लैब में किया जाता है. पानी की तरह दिखता है. पर इसकी एक बूंद भी शरीर पर पड़ जाए, तो घाव हो जाता है, वो हिस्सा जल जाता है.
हमने फोर्टिस अस्पताल के प्लास्टिक सर्जन डॉ. अजय कश्यप से बात की. उन्होंने बताया
'तेजाब शरीर पर जब पड़ता है, तो वो काफी अंदर तक जाता रहता है, तब तक, जब तक उसका रिएक्शन खत्म नहीं हो जाता. हालांकि वो शरीर को कुछ ही हद तक खत्म कर पाता है. आम तौर पर हाइड्रोक्लोरिक और सल्फ्यूरिक एसिड का इस्तेमाल किया जाता है. कभी-कभी नाइट्रिक एसिड भी होता है, पर वो कितना कंसेंट्रेटेड यानी तेज है, ये उस पर निर्भर करता है. इसके इलाज में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं. जितने केस आते हैं, वो दुश्मनी में या फिर आशिकी वाले ही होते हैं. कभी कोई एक्सीडेंटल केस नहीं होता है. इलाज में काफी हद तक सुधारने की कोशिश की जाती है, पर 100 फीसद नहीं हो पाता है. सर्जरी के जरिए ठीक करने की भी पूरी कोशिश की जाती है.'
साथ ही हमने इस मामले में डर्मेटोलॉजिस्ट डॉ. चिरंजीव छाबड़ा से बात की. उन्होंने बताया कि
'एसिड को जब फर्श पर फेंका जाता है, तो उसकी क्या हालत होती है, आप सोच सकते हैं. जब ये किसी के शरीर पर फेंका जाए तो स्किन की दूसरी और तीसरी लेयर बुरी तरह जल जाती है. मांसपेशियां और हड्डियां भी जल जाती हैं. आंख पर पड़ जाए तो वो भी बेकार हो जाती है. इसके जख्म भरने में काफी समय लग जाता है. ज्यादातर ये चेहरे पर ही फेंका जाता है. जिससे चेहरा खराब हो जाता है. आंख के खराब होने पर आर्टीफीशियल आंख लगाई जाती है. सर्जरी होती है. घाव के बाद भी लंबा इलाज चलता है.'
तेजाब फेंकने के पीछे की साइकोलॉजी क्या है?
इस बारे में हमने साइकोलॉजिस्ट डॉ. शालिनी अनंत से बात की. उन्होंने बताया कि
'समाज के कई लोगों में ऐसी मानसिकता है कि औरत को आदमी की हर बात माननी चाहिए. जो भी आदमी की इच्छा हो, उसे औरत को पूरा करना चाहिए. अगर वो ऐसा नहीं करती है तो आदमी इस बात को एक्सेप्ट नहीं कर पाता है और उसे कंट्रोल में लाने के लिए एसिड फेंकने जैसी हरकत कर बैठता है. आपसी रंजिश में भी लड़की को ही निशाना इसलिए बनाया जाता है, जिससे उस लड़की की शादी न हो सके. क्योंकि सभी के लिए लड़की की शादी काफी मायने रखती है. अगर वो उसका चेहरा बिगाड़ देंगे, तो उसकी शादी नहीं होगी और उनका बदला पूरा हो जाएगा. तो जो ऐसी धारणा हैं कुछ पुरुषों में वो इसलिए है, क्योंकि वो कभी न शब्द सुनना ही नहीं चाहते और न बर्दाश्त कर पाते हैं.'
आपको एक और बात बता दें, कि भले ही ये प्रावधान है कि 15 दिन के अंदर एसिड अटैक सर्वाइवर को 1 लाख रुपए मिलने चाहिए, लेकिन बहुत ही कम मामलों में ऐसा हो पाता है. पैसे मिलने की प्रक्रिया भी लंबी चलती है
Source - Odd Nari