बार-बार टॉयलेट आए तो हल्के में मत लीजिए, आपको ये गंभीर बीमारी हो सकती है


रेखा (नाम बदल दिया गया है) नोएडा में रहती हैं. बिजनेसवुमन हैं. शादीशुदा हैं. 11 साल की एक बच्ची की मां हैं. पिछले 8-9 साल से ये डॉक्टरों के चक्कर काट रही थीं. कभी गायनोकॉलोजिस्ट के पास जातीं, कभी हड्डी के डॉक्टर के पास, कभी होम्योपैथिक डॉक्टर के पास, तो कभी यूरोलॉजिस्ट (यूरिन या यूरिन ट्रैक्ट से जुड़ी बीमारी का इलाज करने वाले डॉक्टर) के पास जातीं. कई सारे डॉक्टर्स के दर्शन कर लिए, कुछ नहीं तो 5-6 लाख रुपए भी फूंक दिए इलाज में. लेकिन कई साल पुरानी इनकी परेशानी का हल पिछले 4 महीनों में ही मिला.

अब सवाल आता है कि आखिर रेखा को परेशानी क्या थी? दरअसल, रेखा जब मां बनीं, तो कुछ महीनों बाद उनके पेट के निचले हिस्से में दर्द होने लगा. यूरिन करने जातीं, तब जलन होती. दिन में कई बार बाथरूम जाना पड़ता. कभी-कभी ब्लीडिंग भी होती. रेखा ने गायनेकोलॉजिस्ट को दिखाया. एक नहीं बल्कि तीन-चार गायनेकोलॉजिस्ट के चक्कर काटे. सबने यूरिन से रिलेटेड ढेर सारे टेस्ट लिख दिए. बताया कि रेखा को यूरिन इन्फेक्शन है. उन्हें दवा दी गई, रेखा दवा खातीं, तो कुछ दिन तक राहत मिलती. लेकिन कुछ दिनों में दिक्कत फिर बढ़ जाती. कुछ-कुछ महीनों में रेखा को फिर से दर्द होने लग जाता. फिर रेखा ने हड्डियों के डॉक्टर को भी दिखाया, क्योंकि उन्हें पैर में भी दर्द रहने लगा था. फिर से कई सारे टेस्ट हुए. कोई राहत नहीं मिली.

परेशान रेखा एक यूरोलॉजिस्ट के पास गईं. उन्होंने फिर ढेर सारे टेस्ट लिख दिए. रेखा ने टेस्ट करवाए, तो रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने रेखा को बताया कि उन्हें इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस यानी ब्लैडर पेन सिंड्रोम है. अब 'इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस' को बोलने में मुंह को जितना दर्द होता है, उससे कहीं ज्यादा दर्द रेखा को होता था इस बीमारी से.

खैर, अब जब बीमारी का पता चला, तो रेखा ने फिर इसका इलाज करवाना शुरू कर दिया. कई महीनों तक ढेर सारी दवा खाने के बाद भी रेखा को आराम नहीं मिला. उन्होंने होम्योपैथिक डॉक्टर को भी दिखाया. ये दवा भी कई महीनों तक खाई. कुछ आराम नहीं मिला. परिवार वाले परेशान, पति परेशान, दोस्त परेशान, रेखा खुद परेशान. 8 साल हो चुके थे ब्लैडर का दर्द झेलते-झेलते. फिर उन्होंने अपना डॉक्टर बदला. फिर जिस डॉक्टर के पास गईं, उसने जो बताया उसे जानकर रेखा के होश तो उड़ ही गए, लेकिन साथ में राहत भी मिली.

हुआ ये कि नए यूरोलॉजिस्ट ने बताया कि रेखा को 'इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस' है ही नहीं. बल्कि उन्हें 'कॉम्पैटिबल विद इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस' है. यानी उनके लक्षण इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस से मिलते जरूर हैं, लेकिन उन्हें वो बीमारी नहीं है. नए यूरोलॉजिस्ट ने रेखा को 2 दवा दी. एक दवा 15 दिन तक खानी थी, दूसरी 1 महीने तक. साथ में वॉक करना था, प्रॉपर एक्सरसाइज़ करनी थी. रेखा ने सबकुछ फॉलो किया. और अब उनकी हालत काफी बेहतर हो चुकी है.

हमने रेखा से बात की. उन्होंने हमें बताया कि दर्द पूरी तरह से ठीक तो नहीं हुआ है, लेकिन उन्हें 60 फीसद आराम जरूर मिला है. उन्होंने इतना सबकुछ झेला, क्योंकि वो उस बीमारी का इलाज करवा रही थीं, जो उन्हें थी ही नहीं.

अब सवाल आता है कि वो बीमारी, जिसका रेखा कई साल तक इलाज करवाती रहीं. यानी इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस आखिर है क्या? इतना कठिन सा नाम किस चिड़िया का है? इसके लिए हमने थोड़ी रिसर्च की, और कुछ डॉक्टर्स से भी बात की. जो भी हमें पता चला है, हम आपको बताने जा रहे हैं-

क्या है इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस?

ये आपके ब्लैडर यानी मूत्राशय से जुड़ी हुई बीमारी है. इसमें ब्लैडर में बहुत ज्यादा दर्द होता है. यूरिन करते वक्त भी हद से ज्यादा जलन होती है. कभी-कभी यूरिन करते वक्त औरतों को ब्लीडिंग भी होती है. और ये दिक्कत लंबे समय तक होती है. इसे अंग्रेजी में क्रोनिक इश्यू कहते हैं, और हिंदी में दीर्घकालिक स्थिति.

हमारे शरीर में यूरिन बनाने का काम किडनी करती है. और यूरिन स्टोर करने का काम ब्लैडर का होता है. एक हेल्दी ब्लैडर एक बार में 400 एमएल तक यूरिन स्टोर कर सकता है. ये अमाउंट दिन के समय होता है. वहीं रात में यही ब्लैडर 800 एमएल तक यूरिन स्टोर करता है. एक हेल्दी इंसान, जो दिन में 6 से 8 ग्लास पानी पीता है, वो 6 से 7 बार यूरिन करने जाता है.

अब होता ये है कि जब ब्लैडर अपनी कैपेसिटी के हिसाब से भर जाता है, तब हमारी बॉडी हमें बताती है कि अब तुम्हारा ब्लैडर फुल हो गया है, टॉयलेट जाओ. अगर आपका ब्लैडर हेल्दी है, तो आप अपना यूरिन थोड़ी देर के लिए रोक सकते हैं. जैसा कि हममें से बहुत से लोग करते ही हैं. सफर के दौरान, किसी मीटिंग के दौरान. समझ गए? अब आगे बढ़ते हैं.

जब आपको टाइम मिलता है तो फिर आप टॉयलेट जाते हैं यूरिन पास करने. आपका दिमाग ब्लैडर को सिग्नल देता है. ब्लैडर अपना काम करता है. वो थोड़ा सिकुड़ता है, जिससे प्रेशर बनता है, और आपका यूरिन यूरेथ्रा यानी मूत्रमार्ग से होते हुए बाहर निकलता है.

अब ये सब होता है हेल्दी ब्लैडर के साथ. लेकिन अगर आपके ब्लैडर में दिक्कत है, तो फिर इस प्रोसेस में आपको नानी याद आ जाएगी. अगर आपको इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस है, तो ऐसे में आप अपनी यूरिन को कंट्रोल नहीं कर पाएंगी. आप कुछ-कुछ मिनट बाद ही टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस करेंगी. कई बारी तो ऐसा होगा कि आप तुरंत टॉयलेट से बाहर आएंगे, और आपको फिर से टॉयलेट जाने की जरूरत महसूस होगी.

अगर किसी औरत को इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस है, तो उसकी दिक्कत पीरियड्स के वक्त बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. इसके अलावा आदमी हो या औरत, जो भी इस सिंड्रोम का सामना कर रहा है, उसे सेक्स के दौरान भी बहुत दिक्कत होती है. दर्द और भी ज्यादा बढ़ जाता है.

इस बीमारी को ठीक तरह से जानने के लिए हमने यूरोसर्जन एसवी कोटवाल से बात की. उनसे हमने पूछा कि ये बीमारी होती क्यों है, तब उनेहोंने हमें बताया

'इस बीमारी के होने का कोई पर्टिकुलर कारण किसी को पता नहीं है. इसके बारे में बहुत सारी थ्योरीज हैं. ये भी कहा जाता है कि ये इन्फेक्शन के कारण होता है. इसे ऑटो जनरेटेड बीमारी भी कहा जाता है. जो कि बॉडी अपने टिशूज़ में डिटेक्ट करती है. तो ये होता क्यों है, ये किसी को पता नहीं है. केवल थ्योरीज हैं.'

इसके अलावा डॉक्टर कोटवाल ने बताया-

- ये बीमारी औरतों में ज्यादा होती है. आदमियों को भी होती है, लेकिन औरतों को होने का रिस्क ज्यादा है. किसी भी एज में हो सकती है. छोटी उम्र के लोगों में भी देखा है, लेकिन ज्यादातर 50-60 साल वाले लोगों को ज्यादा होती है.

- इस बीमारी में ब्लैडर सूज जाता है. ब्लैडर में दर्द होता है, पेट के निचले हिस्से में भी दर्द होता है. इसलिए यूरिन करते टाइम दर्द होता है. कई बार यूरिन में ब्लड भी आ जाता है.

- ये भी कहा जाता है कि तनाव की वजह से भी ये बीमारी होती है, लेकिन ये भी एक थ्योरी ही है. लेकिन ये जरूर होता है कि ये इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस होने के बाद इंसान को तनाव बढ़ जाता है. मानसिक तनाव बढ़ जाता है. तनाव के कारण बीमारी होती है, या फिर बीमारी के कारण तनाव होता है, ये कहना मुश्किल है.

- इसका कोई प्रॉपर ट्रीटमेंट नहीं है. क्योंकि इस बीमारी के बारे में एक बार में पता नहीं चलता है. कई सारी बीमारी के लक्षण इसमें शामिल है. क्योंकि पेशाब में जलन होना इन्फेक्शन की वजह से भी हो सकता है. इसलिए इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस का पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. जब इसका पता चलता है तो दवा चलती है इसकी. कई लोगों को ब्लैडर के अंदर दवाएं डालनी पड़ती है, जिससे ये कंट्रोल रहता है. कुछ दवा ऐसी हैं, जिससे फर्क पड़ता है. लेकिन होता क्या है कि कई बार बीमारी बहुत बढ़ जाती है, जिससे ब्लैडर बहुत छोटा हो जाता है, और यूरिन कलेक्ट करने की कैपेसिटी कम हो जाती है. जिससे हालत और भी ज्यादा खराब हो जाती है. तब फिर आखिरी में ऑपरेशन करना होता है. ऑपरेशन ही इस बीमारी का फाइनल सॉल्युशन है.

रेखा से जब हमने उसके केस के बारे में बात की, तब रेखा ने हमें बताया

'दरअसल, मुझे ये बीमारी होने का नए डॉक्टर ने इसलिए मना किया क्योंकि मैं नॉर्मली अपने यूरिन को 2-3 घण्टे होल्ड कर लेती हूं, जो कि इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस में पॉसिबल नहीं है! यूरिन जल्दी आने वाली परेशानी मुझे कुछ महीनों में होती थी, जबकि इस बीमारी में यही दिक्कत सबसे ज़्यादा रहती है. मुझे दर्द वाली परेशानी ज़्यादा होती थी.'

तो आपको बता दें कि इंटरस्टिशियल सिस्टाइटिस में बार-बार यूरिन लगती है. और इसकी सेंसिटिविटी इतनी ज्यादा होती है, कि आप इसे रोक नहीं सकते. और इसके अलावा आपको ब्लैडर, जो आपके पेट के निचले हिस्से में होता है, उसमें बहुत दर्द होता है.

Source - Odd Nari