जैसलमेर का डेजर्ट फेस्टिवल बहुत मशहूर है. दूर-दूर से लोग घूमने आते हैं. महीना फरवरी का होता है, तो हल्की ठंड की वजह से लोग आ भी जाते हैं.
वरना गर्मियों में राजस्थान की तरफ जाना मुश्किल ही होता है. क्यों? यहां की गर्मी बहुत सूखी होती है. जिनको आदत नहीं, वो बेहाल हो जाते हैं. जिनको आदत होती, धोरों के बीच से ज़िन्दगी ढूंढ निकालते हैं. उसे देख आंखें चौंधिया जाती हैं. ढेर सारे रंगों में पगी. गोटे-पत्ते से झिलमिल.
ऐसे ही थे हरीश कुमार. क्वीन हरीश.
थे इसलिए क्योंकि 2 जून 2019 को जोधपुर के कपरड़ा के पास इनकी SUV के ट्रक से भिड़ने के कारण क्वीन हरीश और उनके साथ के कलाकारों रवीन्द्र, भिखे खान, और लतीफ़ खान की मौत हो गई.
1997 से डांस कर रहे थे. कालबेलिया, घूमर, चाकरी, भवाई, घूमर, तेरह ताली जैसे राजस्थानी लोकनृत्यों में गजब की ट्रेनिंग थी. 60 से ज्यादा देशों में परफॉर्म कर चुके थे. अचानक से इस तरह चले जाने पर उनके साथ के लोग भी शॉक में चले गए. किसी को यकीन नहीं हुआ. अभी तो टूर कर रहे थे. क्वीन हरीश शो नाम से शो चलता था. जगह-जगह जा कर उनका ग्रुप परफॉर्म करता था. क्वीन हरीश का आखिरी फेसबुक पोस्ट दिखाता है कि उन्होंने जैसलमेर में चेक इन किया.
बचपन में ही मां-बाप गुज़र गए थे हरीश के. 12 साल के थे, तब मां गुज़र गईं. कुछ ही महीनों में पिताजी भी नहीं रहे. घर में दो छोटी बहनें थीं. और संपत्ति के नाम पर एक छोटा सा घर. घर चलाने के लिए हरीश ने पोस्ट ऑफिस में काम करना शुरू किया. जो समय बचता था, उसमें शाम को टूरिस्ट्स के सामने लड़कियों के कपड़े पहन कर फोक डांस (लोकनृत्य) करते थे. इससे भी पैसे आ जाते थे.
धीरे-धीरे नाम फैला, तो कमाई भी बढ़ी. यूरोप में परफॉर्म करने के लिए बुलाया गया. नाम के साथ लोगों का ध्यान भी गया, उन्होंने मज़ाक उड़ाना शुरू किया. लेकिन हरीश ने अपने इसी तरीके को अपनी खासियत बना लिया. हर जगह इसी की वजह से पॉपुलर हुए.
म्यूजिक डिरेक्टर राम संपत ने लिखा कि जब हरीश नाचते थे तो ऐसा लगता था कि पूरा ब्रह्मांड नाच रहा हो.
प्रकाश झा की फिल्म जय गंगाजल से हरीश ने डेब्यू किया था. उनका गाना एक सीन में दिखाई देता है. इंडियाज़ गॉट टैलेंट में दिखे थे.
लड़कों के लड़कियों की तरह तैयार होकर परफॉर्म करने को ड्रैग आर्ट कहा जाता है. जो पुरुष ये करते हैं उन्हें ड्रैग क्वीन कहा जाता है. उनका मेकअप भी थोड़ा बढ़ा-चढ़ा कर किया जाता है. थोड़ा ड्रामेटिक होता है. क्वीन हरीश भी ड्रैग आर्ट के एक्सपर्ट थे.
क्वीन हरीश द्वारा परफॉर्म किए जाने वाले लोक नृत्य काफी अलग-अलग और इंटरेस्टिंग रहे. सर पर ढेर सारी मटकियां रखकर नाचने वाले चरी नृत्य की बात हो या फिर शरीर में 13 जगह झांझ/मजीरे बांधकर किया जाने वाला तेरह ताली डांस हो, सबमें हरीश बेहतरीन थे. घूमर और कालबेलिया भी परफॉर्म करते थे.
घूमर में चेहरा ढंक कर हाथ हल्के-हल्के घुमाकर नाचा जाता है. इसमें तेज बीट नहीं होती. चक्कर भी हौले-हौले लिए जाते हैं. वहीं कालबेलिया संपेरा जाति का नृत्य माना जाता है. इस में सांप की चाल ढाल की नक़ल की जाती है. तो उसके तेज झटके और सरसराती चाल इस नृत्य में दिखाई जाती है.
नृत्य कोई सा भी हो, हरीश सबमें खूब कमाल करते थे. बॉलीवुड भी उनका कायल था. हाल में ईशा अम्बानी की शादी में परफॉर्म करने गए थे. वहां आराध्या बच्चन के साथ डांस करने वाला उनका विडियो वायरल हुआ था.
38 साल की उम्र में ही उनके फैन दुनिया के कोने-कोने में थे. एक फोक आर्टिस्ट के लिए दुनिया की हर भाषा में प्रेम और श्रद्धांजलि उमड़ रही है. ऐसे अचानक चले जाना हरीश के फैन्स के लिए तो धक्के वाली बात है ही, लोकसंस्कृति (फोक कल्चर) के लिए भी ऐसी क्षति है जिसे कोई क्या ही भरेगा. लिखने वाली बातें हैं. किसी की खाली जगह कोई नहीं भरता.
जैसलमेर के धोरे हरीश को अब भी याद करेंगे. रेत का क्या, आज यहां उड़ी, कल वहां. लेकिन उसमें क्वीन हरीश का चमचमाता लहंगा लश्कारे खाएगा. जमीन जिन कलाकारों – फनकारों को पैदा करती है, उनकी चमक धूसर नहीं पड़ने देती. अलविदा, क्वीन हरीश.
Source - Odd Nari