फादर ऑफ द नेशन के नाम से विख्यात महात्मा गांधी जीवन में कई चीज़ों को पसंद करते थे लेकिन उन्हें सिनेमा बिल्कुल पसंद नहीं था. इसके बावजूद महात्मा गांधी ने अपने जीवन में दो फिल्में देखी हैं. उन्होंने सबसे पहली फिल्म साल 1943 में मिशन टू मॉस्को देखी थी. इंडस्ट्रीलियिस्ट शांति कुमार मोरारजी के मुताबिक, गांधी की एसोसिएट मीराबेन ने गांधी को ये फिल्म देखने के लिए मनाया था. गांधी उस समय आगा खान जेल से छूट कर आने के बाद नरोत्तम मोरारजी के फैमिली बंगले के कंपाउड में रह रहे थे.
एक दिन उस कंपाउंड में पोल्स लगाने का काम चल रहा था और बिजली कनेक्शन लगाने का इंतजाम किया जा रहा था. स्थानीय म्युनिसिपालिटी से इजाजत लेने के बाद ये काम किया जा रहा था ताकि गांधी को फिल्म दिखाई जा सके. ये शो 21 मई 1944 को रखा गया था. हालांकि ये फिल्म रूस के यूएस एंबेसेडर जोसेफ डेविस की जीवनी पर आधारित थी लेकिन इस फिल्म में कम कपड़ों में महिलाओं को देखकर गांधी भड़क गए थे. शांति कुमार लिखते हैं कि उन्होंने वहां मौजूद लोगों को न्यूड सीन्स दिखाने के चलते डांटा भी था.
इंग्लिश के बाद गांधी ने देखी ये हिंदी फिल्म
इस शो के बाद आर्ट डायरेक्टर कन्नु देसाई ने गांधी को एक हिंदी फिल्म दिखाने का मन बना लिया था. इस फिल्म का नाम था राम राज्य. देसाई इस फिल्म के आर्ट डायरेक्टर थे. इस फिल्म को विजय भट्ट ने प्रोड्यूस किया था. शांति कुमार ने इस फिल्म को देखा था और उन्हें पूरी उम्मीद थी कि गांधी को ये फिल्म पसंद नहीं आएगी लेकिन वे आखिरकार कन्नू देसाई की बात मान गए. उनके अनुसार, गांधी ने कहा था कि मुझे एक हिंदी फिल्म देखनी ही होगी क्योंकि मैंने एक इंग्लिश फिल्म देखने की गलती कर दी है.
गांधी के लिए इस फिल्म का शो 2 जून 1944 को रखा गया था. माना जाता है कि इस फिल्म को गांधी ने पहले सिर्फ आधे घंटे के लिए ही देखने का प्लान किया था लेकिन जब उन्होंने इस फिल्म को देखना शुरू किया तो उन्होंने इसे पूरा देख लिया था. हालांकि इस मामले में शांति कुमार का कहना है कि गांधी को ये फिल्म भी बिल्कुल पसंद नहीं आई थी क्योंकि उन्हें फिल्म में शोर की आवाजें और चीख-चिल्लाहट बिल्कुल पसंद नहीं आई थी.
फिल्मों को लेकर नेगेटिव था गांधी का नजरिया
उन्होंने एक प्रेयर मीटिंग के दौरान इस बात को मानने से इंकार कर दिया था कि फिल्में मॉरल टीचिंग के लिए भी इस्तेमाल हो सकती हैं. गांधी इस आइडिया के साथ बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं थे कि एक क्लोज जगह में बिना वेंटीलेशन में बैठकर कोई चलचित्र देखा जाए. अखबारों में वे हीरो-हीरोईन की तस्वीरों की आलोचना करते थे. गांधी मानते थे कि फिल्म थियेटर्स की जगह वे स्पीनिंग थियेटर खोलना पसंद करेंगे. हालांकि सिनेमा के समर्थक ना होने के बावजूद गांधी परफॉर्मिंग आर्ट्स पसंद करते थे. वे म्यूजिक के शौकीन थे और 1947 में कोलकाता में जुथिका रॉय के भजनों को सुनना काफी पसंद करते थे.
Source - NDTV