जब BHU के चंदे के लिए महामना ने नीलाम कर दी निजाम की जूती



भारत रत्न से सम्मानित महामना मदनमोहन मालवीय की आज (12 नवंबर) पुण्यतिथि है. आज देश-विदेश में विख्यात बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) जैसा केंद्रीय संस्थान देने वाले महामना ने लोगों से चंदा मांगकर इसकी नींव रखी थी. आइए, जानें- उनके जीवन से जुड़ी ये खास बातें.

महामना मदन मोहन मालवीय देश के शिक्षाविद् होने के साथ ही एक स्वतंत्रता सेनानी भी थी. उन्हें BHU के पितामाह के नाम से भी पहचान मिली थी. वो राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र भाषा के समर्थक थे. पंडित मदन मोहन मालवीय का निधन 12 नवंबर 1946 को बनारस में हुआ था. उनका पूरा जीवन देश और शिक्षा के नाम समर्पित रहा. उन्होंने साल 1884 में स्नातक की डिग्री की थी.

उनके बचपन की बात करें तो मदन मोहन मालवीय पिता की तरह कथावाचक बनना चाहते थे. उनके पिता कथावाचन करके घर की रोजी रोटी चलाते थे. लेकिन उस दौर में अभाव के चलते उन्हें सरकारी विद्यालय में शिक्षक की नौकरी करना ज्यादा मुफीद लगा. वो इस नौकरी में जाकर एक बेहतर शिक्षक साबित हुए. पूरे भारत में वो अकेले ऐसे शख्स हैं जिन्हें उनके महान कार्यों के लिए 'महामना' की उपाधि दी गई.

ऐसे पड़ी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की नींव

मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1916 में की थी. इसके बाद वो 20 साल तक बीएचयू के वाइस चांसलर भी रहे. इसके साथ ही साल 1924 से 1946 तक वो हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन भी रहे.

उन्होंने साल 1907 में 'अभ्युदय' हिंदी साप्ताहिक की शुरुआत की. फिर 1909 में 'द लीडर' अंग्रेजी अखबार की स्थापना की. ये अखबार इलाहाबाद से प्रकाशित होता था. मदन मोहन मालवीय एक मात्र ऐसे थे, जो कांग्रेस के 4 बार अध्यक्ष चुने गए. शिक्षा जगत में अच्छी पहचान होने के साथ ही उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति भी बहुत अलग थी. वो लोगों के बीच उस दौर के लोकप्रिय नेता के तौर पर जाने जाते थे.

महात्मा गांधी ने भी की तारीफ, भारत रत्न भी मिला

बताते हैं कि जब मदन मोहन मालवीय से महात्मा गांधी मिले, तो मिलने के बाद उन्होंने कहा कि 'मालवीय जी मुझे गंगा की धारा जैसे निर्मल और पवित्र लगे, मैंने तय किया कि मैं गंगा की उसी निर्मल धारा में गोता लगाऊंगा'. भारत सरकार ने महामना मदन मोहन मालवीय को 2015 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया था. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में मालवीय के परिजनों को भारत रत्न प्रदान करने के साथ ही बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित कई लोगों को पद्म पुरस्कारों से भी सम्मानित किया था. आपको बता दें कि 'सत्यमेव जयते' नारे को लोकप्रिय बनाने वाले मालवीय जी ही थे.

यूं सिखाया निजाम को सबक

बीएचयू विश्वविद्यालय के निर्माण के समय मालवीय दान के लिए हैदराबाद के निजाम के पास गए तो, निजाम ने चंदा देने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन पंडित मालवीय माने नहीं और चंदे की मांग पर अड़े रहे. निजाम ने कहा कि उनके पास चंदे में देने के लिए सिर्फ उनकी जूती है. मालवीय निजाम की चप्पल उठाकर ले गए और नीलाम कर दी और उससे भी पैसा जुटा लिया.

तीनों भाषाओं में थी अच्छी पकड़

महामना मालवीय संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी तीनों ही भाषाओं के ज्ञाता थे. महामना का जीवन विद्यार्थियों के लिए एक महान प्रेरणास्रोत रहा है. जनसाधारण में वे अपने सरल स्वभाव के कारण ही सबके प्रिय थे, कोई भी उनके साथ बात कर सकता था. उन्हें पढ़ाना सबसे प्रिय लगता था. महामना ने हमेशा अपने उद्बोधनों में राष्ट्र में शिक्षा की महत्ता पर जोर दिया. उन्होंने इसके लिए अच्छे शैक्षणिक संस्थानों को बनाने पर जोर दिया.

Source - Aaj Tak