पढ़ाई में होनहार, तर्क कौशल के धनी और राजनीति के धुरंधर अरुण जेटली बीजेपी में एक बड़े कद के नेता थे. उनका जन्म 28 दिसंबर, 1952 को दिल्ली में महाराज किशन जेटली और रतन प्रभा जेटली के घर हुआ था. उनके पिता वकालत के पेशे में थे, सो बचपन से ही पिता को आदर्श मानने वाले अरुण जेटली के मन में वकील बनने का सपना जाग गया था. लंबे समय से बीमारी के चलते आज (24 अगस्त) को दोपहर 12.07 बजे निधन हो गया था. आइए जानते हैं उनके बारे में.
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का निधन, यहां दें श्रद्धांजलि
पिता एक ओहदेदार व्यक्ति के साथ ही एक अच्छे वकील थे सो उनकी शिक्षा हमेशा उच्च स्तर के माने जाने वाले संस्थानों से हुई. उन्होंने स्कूली सेंट जेवियर्स स्कूल, नई दिल्ली से की. साल 1973 में दिल्ली यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के लिए हमेशा से नंबर वन रहे SRCC (श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स) नई दिल्ली में बीकॉम में एडमिशन लिया. यहां से ग्रेजुएशन की डिग्री लेने के बाद उन्होंने साल 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री भी ली.
जगी राजनीति की आस
लॉ की पढ़ाई के दौरान ही सत्तर के दशक में उनके भीतर राजनीति में जाने की आस जगी. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ज्वाइन कर लिया. कुछ ही साल की छात्र राजनीति में उन्हें अच्छी ख्याति मिली और फिर 1974 में विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में चुने गए. ये हीराजनीति जगत में उनका पहला कदम कहा जाएगा जो उन्हें इतना आगे ले गया.
ऐसे बनाई बीजेपी में पैठ
छात्र राजनीति से जारी हुआ राजनीतिक सफर साल 1991 में अपने मुकम्मल मोड़ पर पहुंचा. अपने संघर्ष और राजनीतिक इच्छाशक्ति की बदौलत वो 1991 में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुए. कार्यकारिणी में सफलता पूर्वक कार्य करने के आठ साल बाद 13 अक्टूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उन्हें सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की जिम्मेदारी दी गई. इसी के साथ ही उन्हें विनिवेश की नीति को प्रभावी करने के लिए पहली बार एक नया मंत्रालय मंत्रालय दिया गया जिसमें वो विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) भी बन गए.
पुख्ता हो गई पहचान
अरुण जेटली बीजेपी में अब ऐसे महत्वपूर्ण जगह बना चुके थे कि उन्हें 23 जुलाई 2000 को कानून मंत्रालय, न्याय और कंपनी मामलों का अतिरिक्त प्रभार संभालने की जिम्मेदारी दी गई. वो नवंबर 2000 में पहली बार कैबिनेट मंत्री बने. इसके साथ ही कानून, न्याय और कंपनी मामलों व जहाजरानी मंत्री का पदभार भी संभाला. फिर जून 2009 को राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में चुना गया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीते कार्यकाल में 26 मई 2014 के बाद से अरुण जेटली मंत्रिमंडल में शामिल रहे. उन्होंने वित्त मंत्रालय और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली. बीते कार्यकाल में वो रक्षा मंत्री (2014 और 2017) के अलावा सूचना और प्रसारण मंत्री (2014-2016) भी रहे.
जम्मू-कश्मीर में है ससुराल
37 साल पहले अरुण जेटली ने 24 मई 1982 को जम्मू-कश्मीर के पूर्व वित्त मंत्री गिरधारी लाल डोगरा की बेटी संगीता से शादी की थी. उनके दोनों बच्चे बेटे रोहन और बेटी सोनाली ने भी पिता की तरह वकालत में करियर बनाया है.
एक वकील के तौर पर
सिर्फ राजनीति ही नहीं बल्कि अरुण जेटली ने एक वकील के तौर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. डीयू से LLB की डिग्री लेने के बाद 1977 से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश भर के हाईकोर्ट में कई केस लड़े हैं. तमाम व्यस्तताओं और जिम्मेदारियों के बावजूद उन्होंने कभी भी अपनी वकालत नहीं छोड़ी. वो अपने कई इंटरव्यू में कह चुके हैं कि समय प्रबंधन से इंसान अपने जीवन में बड़े से बड़े लक्ष्य प्राप्त कर सकता है.
वकील के तौर पर बनाई ये पहचान
साल 1990 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय की ओर से सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया. इससे पहले 1989 में उन्हें अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किया गया था. साल 1998 में वो संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के लिए भारत सरकार की ओर से एक प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए. इस सत्र में ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित कानूनों की घोषणा को मंजूरी दी गई थी.
संघर्षों से भरा रहा तिहाड़ जेल का वो दौर
भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार अरुण जेटली के जीवन का सबसे चुनौतीपूर्ण दौर 1975 से 1977 रहा. ये वो दौर था जब देश में आंतरिक आपातकाल घोषित किया गया था. उस दौरान जब नागरिक स्वतंत्रता को निलंबित कर दिया गया था. उन्हें प्रदर्शन करने के कारण अंबाला जेल और फिर तिहाड़ जेल दिल्ली में प्रिवेंटिव डिटेंशन में रखा गया था.
साल 1977 में, लोकतांत्रिक युवा मोर्चा के संयोजक के रूप में कांग्रेस को आम चुनावों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था. उस दौरान वो दिल्ली ABVP के अध्यक्ष और ABVP के अखिल भारतीय सचिव नियुक्त किए गए. यहीं से उन्होंने बीजेपी की युवा शाखा का नेतृत्व करने का अवसर प्राप्त किया.
साल 2015 में इस विवाद में फंसे
साल 1999 से 2013 के बीच अरुण जेटली दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के अध्यक्ष और बीसीसीआई (क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड आफ इंडिया) के उपाध्यक्ष भी रहे. साल 2013 में उन्होंने अपनी व्यस्त राजनीतिक प्रतिबद्धताओं का हवाला देकर उन्होंने डीडीसीए का चुनाव नहीं लड़ा और बीसीसीआई उपाध्यक्ष का पद भी छोड़ दिया था.
Source - Aaj Tak